जय श्री राम,,,,,
🌺शरणागति के विषय में एक कथा आती है । सीताजी, रामजी और हनुमानजी जंगल में एक वृक्ष के नीचे बैठे थे । उस वृक्ष की शाखाओं और टहनियों पर एक लता छायी हुई थी । लता के कोमल-कोमल तन्तु फैल रहे थे । उन तन्तुओं में कहीं पर नयी-नयी कोंपलें निकल रही थीं और कहीं पर ताम्रवर्ण के पत्ते निकल रहे थे । पुष्प और पत्तों से लता छायी हुई थी । उससे वृक्ष की सुन्दर शोभा हो रही थी । वृक्ष बहुत ही सुहावना लग रहा था । उस वृक्ष की शोभा को देखकर भगवान् श्रीराम हनुमानजी से बोले-'देखो हनुमान् ! यह लता कितनी सुन्दर है ! वृक्ष के चारों ओर कैसी छायी हुई है ! यह लता अपने सुन्दर-सुन्दर फल, सुगन्धित फूल और हरी-हरी पत्तियों से इस वृक्ष की कैसी शोभा बढ़ा रही है । इससे जंगल के अन्य सब वृक्षों से यह वृक्ष कितना सुन्दर दीख रहा है ! इतना ही नहीं, इस वृक्ष के कारण ही सारे जंगल की शोभा हो रही है । इस लता के कारण ही पशु-पक्षी इस वृक्ष का आश्रय लेते हैं । धन्य है यह लता !'
भगवान् श्रीराम के मुख से लता की प्रशंसा सुनकर सीताजी हनुमानजी से बोलीं-'देखो बेटा हनुमान् ! तुमने खयाल किया कि नहीं ? देखो, इस लता का ऊपर चढ़ जाना, फूल-पत्तों से छा जाना, तन्तुओं का फैल जाना-ये सब वृक्ष के आश्रित हैं, वृक्ष के कारण ही हैं । इस लता की शोभा भी वृक्ष के ही कारण है । इस वास्ते मूल में महिमा तो वृक्ष की ही है । आधार तो वृक्ष ही है । वृक्ष के सहारे बिना लता स्वयं क्या कर सकती है ? कैसे छा सकती है ? अब बोलो हनुमान् ! तुम्हीं बताओ, महिमा वृक्ष की ही हुई न ? '
रामजी ने कहा-'क्यों हनुमान् ! यह महिमा तो लता की ही हुई न ?'
हनुमानजी बोले-'हमें तो तीसरी ही बात सूझती है ।'
सीताजी ने पूछा-'वह क्या है बेटा ?'
हनुमानजी ने कहा-'माँ ! वृक्ष और लता की छाया बड़ी सुन्दर है । इस वास्ते हमें तो इन दोनों की छाया में रहना ही अच्छा लगता है अर्थात् हमें तो आप दोनों की छाया ( चरणों के आश्रय ) में रहना ही अच्छा लगता है !'
सेवक सुत पति मातु भरोसें । रहइ असोच बनइ प्रभु पोसें ।।
( मानस ४ । ३ । २ )
ऐसे ही भगवान् और उनकी दिव्य आह्लादिनी शक्ति-दोनों ही एक-दूसरे की शोभा बढ़ाते हैं । परंतु कोई तो उन दोनों को श्रेष्ठ बताता है, कोई केवल भगवान् को श्रेष्ठ बताता है और कोई केवल उनकी आह्लादिनी शक्ति को श्रेष्ठ बताता है । शरणागत भक्त के लिये तो प्रभु और उनकी आह्लादिनी शक्ति-दोनों का आश्रय ही श्रेष्ठ है ।🌺
विशेष ,,,,
ये पौराणिक कथाएं हमें मानव की प्रसन्नता का मूल कारण बताती है ! जिन्हे पढ़कर हमारा ज्ञान बढ़ता है !
कलयुग में अधिकांश मानवो की प्रवृति तामसिक ( काम, क्रोध, मद लोभ मोह एवं अहंकार ) होने के कारन आज ऐसे मानवो की प्रसन्नता ( आल्हादिनी शक्ति ) बदल गयी है लालची के लिए धन संग्रह , अहंकारी के लिए स्वयं की प्रशंसा वासना से पीड़ित व्यक्ति के लिए भोग इत्यादि !
मानव के जीवन में तामस का उदय जड़ता , मूढ़ता , अज्ञान एवं अहनकार के आगमन का संकेत है ! अतः तामस का उदय मत होने दो ! इसके उदय के कारन आपको अपनी मनुष्य योनि खोनी पड़ेगी और नरक लोक यानि पशु पक्षी की योनि में जाना पडेगा जहाँ दुःख ही दुःख है ! इसलिए परोपकार में मन लगाए और संवेदनशील व्यक्ति बनाने के लिए सात्विक आहार ही खाये !
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धर्मशील व्यक्ति ,,,,,,,
जिमि सरिता सागर महँ जाहीं l
जद्यपि ताहि कामना नाहीं ll
तिमि सुख सम्पति बिनहिं बुलाये l
धर्मशील पहँ जाइ सुहाये ll
जैसे सरिता (नदी ) उबड-खाबड़, पथरीले स्थानों को पार करते हुए पूर्ण रूपेण निष्काम भाव से समुद्र में जा मिलती है, उसी प्रकार धर्म-रथ पर आसीन मनुष्य के पास उसके न चाहते हुए भी समस्त सुख-सम्पत्ति, रिद्धियाँ-सिद्धियाँ स्वत: आ जाती हैं, सत्य तो यह है कि वे उसकी दासिता ग्रहण करने के लिए लालायित रहती है !
विष्णु मन्त्र ,,,,,,,,,,,,,,
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघ वर्णं शुभाङगम्।।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्।
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।
भावार्थ - जिनकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो देवताओं के भी ईश्वर और संपूर्ण जगत के आधार हैं, जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है, अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ।
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गौ सेवा एवं गौ रक्षा ,,,,,,,,
भगवान हंस कहते हैं- हे ब्राह्मणों ! !!! गौओं के शरीर को खुजलाने, उनके शरीर के कीटाणुओं कोदूर करने से मनुष्य अपने समस्त पापों को धो डालता हैं ।
श्लोक ,,,,,,
गवां कण्डूयकान्मत्र्यः सर्वपापं व्यपोहति ।
तासां ग्रास प्रदानेन महत्पुण्यमवाप्नुयात् ।।
(विष्णुधर्मोत्तर पुराण)
अदिति ,,,,,,,
हरे हरे तिनकों पर अमृत-घट छलकाती गौ माता,
जब-जब कृष्ण बजाते मुरली लाड़ लड़ाती गौ माता।
तुम्ही धर्म हो, तुम्ही सत्य हो, पृथ्वी-सा सब सहती हो,
मोक्ष न चाहे ऐसे बंधन में बँधकर तुम रहती हो।
प्यासे जग में सदा दूध की नदी बहाती गौ माता,
जब-जब कृष्ण बजाते मुरली लाड़ लड़ाती गौ माता।।
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गाय गोलोक की एक अमूल्य निधि है, जिसकी रचना भगवान ने मनुष्यों के कल्याणार्थ आशीर्वाद रूप से की है। अत: इस पृथ्वी पर गोमाता मनुष्यों के लिए भगवान का प्रसाद है। भगवान के प्रसादस्वरूप अमृतरूपी गोदुग्ध का पान कर मानव ही नहीं अपितु देवगण भी तृप्त होते हैं। इसीलिए गोदुग्ध को ‘अमृत’ कहा जाता है। गौएं विकाररहित दिव्य अमृत धारण करती हैं और दुहने पर अमृत ही देती हैं। वे अमृत का खजाना हैं। सभी देवता गोमाता के अमृतरूपी गोदुग्ध का पान करने के लिए गोमाता के शरीर में सदैव निवास करते हैं। ऋग्वेद में गौ को ‘अदिति’ कहा गया है। ‘दिति’ नाम नाश का है और ‘अदिति’ अविनाशी अमृतत्व का नाम है। अत: गौ को ‘अदिति’ कहकर वेद ने अमृतत्व का प्रतीक बतलाया है।
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**** अपने आप को गौरवांवित महसूस करें l****
आप भाग्यशाली है कि परलोक से संबंधित ज्ञान ( पवित्र गीता अध्याय १४ वर्णित " सृष्टि त्रिगुणात्मक == सत्व, रज, तामस ) केवल सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथो में लिपिबद्ध है l दुनिया के और किसी धर्म के पास नहीं है l इस ज्ञान को पाकर आप नरक जाने से बच सकते हैं l आवश्यकता है सात्विक आहार खाने की !
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" जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख !"
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"एक माटी का दिया सारी रात अंधियारे से लड़ता है,
तू तो प्रभु का दिया है फिर किस बात से डरता है..."
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हे मानव तू उठ और सागर (प्रभु ) में विलीन होने के लिए पुरुषार्थ कर ,,,,,
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,,,,सच्चे संतो की वाणी से अमृत बरसता है , आवश्यकता है ,,,उसे आचरण में उतारने की ...
शरीर परमात्मा का दिया हुआ उपहार है ! चाहो तो इससे " विभूतिया " (अच्छाइयां / पुण्य इत्यादि ) अर्जित करलो चाहे घोरतम " दुर्गति " ( बुराइया / पाप ) इत्यादि !
परोपकारी बनो एवं प्रभु का सानिध्य प्राप्त करो !
प्रभु हर जीव में चेतना रूप में विद्यमान है अतः प्राणियों से प्रेम करो !
शाकाहार अपनाओ , करुणा को चुनो !
जय गौमाता की 🙏👏🌹🌲🌿