२. मार्गशीर्ष मास ,,,,,,,,
(स्कन्दपुराण वैष्णवखण्ड)
मम नाम प्रवक्तव्यं सहे चैव विशेषतः ।
कृष्णकृष्णेति वक्तव्यं मम प्रीतिकरं परम् ।।
कृष्णकृष्णेति कृष्णेति यो मां स्मरति नित्यशः ।
जलं भित्त्वा यथा पद्मं नरकादुद्धराम्यहम्।।
अगहन (#मार्गशीर्ष) के महीने में विशेषरूप से #कृष्ण-कृष्ण कहकर मेरा नाम लेना चाहिए। यह मुझे अत्यंत प्रसन्न करने वाला है।
जो ‘हे कृष्ण! हे कृष्ण!! हे कृष्ण!!!’ ऐसा कहकर मेरा प्रतिदिन स्मरण करता है, उसे जिस प्रकार कमल जल को भेदकर ऊपर निकल आता है, उसी प्रकार मैं नरक से निकाल लाता हूँ।
ब ,,,,,,,
नीराजनं तु यः पश्येत्सहोमासे ममाऽग्रतः ।।
सप्तजन्म भवेद्विप्रो ह्यंते च परमं पदम् ।। ३५ ।।
जो अगहन (मार्गशीर्ष) के महीने में मेरे आगे होती हुई आरती का दर्शन करता है, वह सात जन्म विप्र होकर अंत में परम पद को प्राप्त होता है।
यः करोति सहोमासे कर्पूरेण च दीपकम् ।।
अश्वमेधमवाप्नोति कुलं चैव समुद्धरेत् ।। ३८ ।।
जो मार्गशीर्ष मास में कपूर से दीपक जलाकर मुझे अर्पण करता है, वह अश्वमेघ यज्ञ का फल पाता और अपने कुल का उद्धार कर देता है।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌷🌷🌷🌷🌷🌷