राजा जनक को नरक लोक द्वार के दर्शन,,,,,
प्राचीन काल की बात है। राजा जनक ने ज्यों ही योग बल से शरीर का त्याग किया, त्यों ही एक सुन्दर सजा हुआ विमान आ गया और राजा दिव्य-देहधारी सेवको के साथ उस पर चढकर चले।
.
विमान महाराज को संमनी पुरी के निकटवर्ती भाग से ले जा रहा था। ज्यों ही विमान वहाँ से आगे बढ़ने लगा, त्यों ही बड़े ऊँचे स्वंर से राजा को हजारों मुखों से निकली हुई करुणध्वनि सुनायी पड़ी...
.
पुण्यात्मा राजन्! आप यहां से जाइये नहीं, आपके शरीर को छूकर आने वाली वायु का स्पर्श पाकर हम यातनाओ से पीड़ित नरक के प्राणियों को बड़ा ही सुख मिल रहा है।
.
धार्मिक और दयालु राजा ने दुखी जीवों की करुण पुकार सुनकर दया के वश निश्चय किया कि, जब मेरे यहाँ रहने से इन्हें सुख मिलता है तो यम, मैं यहीं रहूंगा। मेरे लिये यही सुन्दर स्वर्ग है।
.
राजा वहीं ठहर गये। तब यमराज ने उनसे कहा, यह स्थान तो इष्ट, हत्यारे पापियों के लिये है।
.
हिंसक, दूसरो पर कलंक लगाने वाले, लुटेरे, पतिपरायणा पती का त्याग करनेवाले, मित्रों को धोखा देने वाले, दम्भी, द्वेष और उपहास करके मन-वाणी-शरीरों, कभी भगवान्का स्मरण न करने वाले जीव यहाँ आते हैं और उन्हें नरकों मे डालकर मैं भयंकर यातना दिया करता हूँ।
.
तुम तो पुण्यात्मा हो, यहाँ से अपने प्राप्य दिव्य लोक में जाओं।
.
जनक ने कहा, मेरे शरीर से स्पर्शं की हुई वायु इन्हें सुख पहुँचा रही है, तब मैं केसे जाऊं ? आप इन्हें इस दुख से मुक्त कर दें तो में भी सुखपूर्वक स्वर्ग में चला जाऊंगा।
.
यमराज ने [पापियों की ओर संकेत करके] कहा, ये कैसे मुक्त हो सकते है ? इन्होंने बड़े बड़े पाप किये हैं।
.
इस पापी ने अपने पर बिश्वास करने वाली मित्र पत्नी पर बलात्कार किया था, इसलिये इसको मैंनेे लोहशंकु नामक नरक में डाल कर दस हजार वर्षों तक पकाया है।
.
अब इसे पहले सूअर की और फिर मनुष्य की योनि प्राप्त होगी और वहाँ यह नपुंसक होगा।
.
यह दूसरा बलपूर्वक व्यभिचारमें प्रवृत्त था। सौ वर्षों तक रौरव नरक में पीड़ा भोगेगा।
.
इस तीसरे ने पराया धन चुराकर भोगा था, इसलिये दोनों हाथ काट कर इसे पूयशोणित नामक नरक में डाला जायगा।
.
इस प्रकार ये सभी पापी नरक के अधिकारी हैं। तुम यदि इन्हें छुड़ाना चाहते हो तो अपना पुण्य अर्पण करों।
.
एक दिन प्रातः काल शुद्ध मन से तुमने मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् श्रीरघुनाथ जी का ध्यान किया था और अकस्मात् रामनाम का उच्चारण किया था, बस वही पुण्य इन्हें दे दो। उससे इनका उद्धार हो जायगा।
.
राजा ने तुरंत अपने जीवन भर का पुण्य दे दिया और इसके प्रभाव से वे सारे प्राणी नरक यन्त्रणा से तत्काल छूट गये तथा दया के समुद्र महाराज जनक का गुण गाते हुए दिव्य लोक को चले गये।
.
तब राजा ने धर्मराज से पूछा कि, हे धर्मराज.. जब धार्मिक पुरुषों का यहां आना ही नहीं होता, तब फिर मुझे यहां क्यों लाया गया है।
.
इस पर धर्मराज ने कहा, राजन् तुम्हारा जीवन तो पुण्यो से भरा है, पर एक दिन तुमने छोटा सा पाप किया था।
.
एकदा तु चरन्ती गां वारयामास वै भवान्।
तेन पापविपाकेन निरयद्वारदर्शनम्।।
.
तुमने चरती हुई गौ माता को रोक दिया था। उसी पाप के कारण तुम्हें नरक का दरवाजा देखना पड़ा।
.
अब तुम उस पाप से मुक्त हो गये और इस पुण्यदान से तुम्हारा पुण्य और भी बढ़ गया। तुम यदि इस मार्ग से न आते तो इन बेचारों का नरक से कैसे उद्धार होता ?
.
तुम जैसे दूसरों के दुख से दुखी होने वाले दया धाम महात्मा दुखी प्राणियों का दुख हरने मे ही लगे रहते हैं।
.
भगवान् कृपासागर हैं। पाप का फल भुगताने के बहाने इन दुखी जीवों का दुख दूर करने के लिये ही इस संयमनी के मार्ग से उन्होंने तुम को यहां भेज दिया है।
.
तदनन्तर राजा धर्मराज को प्रणाम करके परम धाम को चले गये।
.
(पद्मपुराण, पातालखण्ड, अध्याय १८-१९)
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
🍀🌺जय जय श्री राधे कृष्ण 🍀🌺
🌺🍀🌺🍀🌺🍀🌺🌺☘️🌺☘️🌺☘️🌺
🌺लेख ना मिटिई हे सखी जो लिखिआ करतार।🌺
अपने पापों ओर पुण्यों का हिसाब इंसान को खुद ही भोगना है...इसलिये
🌺🍀सैकड़ों हाथों से नेक कमाई को इकट्ठा करो और हज़ारों हाथों से बाँटो /सबकी दुआएं अर्जित करो 🍀🌺
🚩
हमेशा ध्यान में रखिये ---
" आप एक शुद्ध चेतना है यानि स्व ऊर्जा से प्रकाशित आत्मा ! माया (अज्ञान ) ने आपकी आत्मा के शुद्ध स्वरुप को छीन रखा है ! अतः माया ( अज्ञान ) से पीछा छुडाइये और शुद्ध चेतना को प्राप्त कर परमानन्द का सुख भोगिए !
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
धर्मशील व्यक्ति ,,,,,,,
जिमि सरिता सागर महँ जाहीं l
जद्यपि ताहि कामना नाहीं ll
तिमि सुख सम्पति बिनहिं बुलाये l
धर्मशील पहँ जाइ सुहाये ll
जैसे सरिता (नदी ) उबड-खाबड़, पथरीले स्थानों को पार करते हुए पूर्ण रूपेण निष्काम भाव से समुद्र में जा मिलती है, उसी प्रकार धर्म-रथ पर आसीन मनुष्य के पास उसके न चाहते हुए भी समस्त सुख-सम्पत्ति, रिद्धियाँ-सिद्धियाँ स्वत: आ जाती हैं, सत्य तो यह है कि वे उसकी दासिता ग्रहण करने के लिए लालायित रहती है !
🌹मानवीय गुणों में एक प्रमुख गुण है "क्षमा" और क्षमा जिस भी मनुष्य के अन्दर है वो किसी वीर से कम नही है। तभी तो कहा गया है कि- " क्षमा वीरस्य भूषणं और क्षमा वाणीस्य भूषणं " क्षमा साहसी लोगों का आभूषण है और क्षमा वाणी का भी आभूषण है। यद्यपि किसी को दंडित करना या डाँटना आपके वाहुबल को दर्शाता है।
🌹मगर शास्त्र का वचन है कि बलवान वो नहीं जो किसी को दण्ड देने की सामर्थ्य रखता हो अपितु बलवान वो है जो किसी को क्षमा करने की सामर्थ्य रखता हो। अगर आप किसी को क्षमा करने का साहस रखते हैं तो सच मानिये कि आप एक शक्तिशाली सम्पदा के धनी हैं और इसी कारण आप सबके प्रिय बनते हो।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
,,,,सच्चे संतो की वाणी से अमृत बरसता है , आवश्यकता है ,,,उसे आचरण में उतारने की ....
जय गौमाता की 🙏👏🌹🌲🌿🌹
" जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख !"
"एक माटी का दिया सारी रात अंधियारे से लड़ता है,
तू तो प्रभु का दिया है फिर किस बात से डरता है..."
हे मानव तू उठ और सागर (प्रभु ) में विलीन होने के लिए पुरुषार्थ कर ,,,,,,
जिसका मन लग गया भगवान मे उसका दीया भी जलेगा तुफान में
तन का दीपक मन की बाती जगमग ज्योत जले दिन राती।
कैसा खेल रचाया भगवान ने 🙏हरि ॐ नमो नारायणा 🙏
तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला। ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला॥
प्रभु,आप जिस पर अनुकूल होते हैं, उसे तीनों प्रकार के भवशूल (आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक ताप) नहीं व्यापते...॥जय श्री राम॥
,
"सत्य वचन में प्रीति करले,सत्य वचन प्रभु वास।
सत्य के साथ प्रभु चलते हैं, सत्य चले प्रभु साथ।। "
शरीर परमात्मा का दिया हुआ उपहार है ! चाहो तो इससे " विभूतिया " (अच्छाइयां / पुण्य इत्यादि ) अर्जित करलो चाहे घोरतम " दुर्गति " ( बुराइया / पाप ) इत्यादि !
परोपकारी बनो एवं प्रभु का सानिध्य प्राप्त करो !
प्रभु हर जीव में चेतना रूप में विद्यमान है अतः प्राणियों से प्रेम करो !
शाकाहार अपनाओ , करुणा को चुनो !
जय गौमाता की🌺🍀🙏🌺🍀🙏