🌷🌷🌺सबसे बड़ादान कौनसा है ?🌺 🌷🌷
आपने कभी न कभी, किसी न किसी प्रकार का दान तो किया होगा, ओर ये सोचते भी होंगे की सबसे बड़ा दान कौन सा है ! कन्या-दान सबसे बड़ा है, या गौदान सबसे बड़ा है, या रक्तदान सबसे बड़ा है, या जीवन दान सबसे बड़ा है, या अन्न दान सबसे बड़ा है। विचार कीजिये की कौन सा दान सबसे बड़ा है और क्यों?
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गहराई से विचार करे तो कन्या-दान सबसे बड़ा दान प्रतीत होता है ! इसके विषय में आपकी क्या राय है ? इसके मानने के पीछे क्या ये कारण है ? कन्या-दान को छोड़ कर आप किसी भी तरह का दान देखले, वो सभी दान करने वाले व्यक्ति, दान करने के बाद एक तरह की मैं (अभिमान, हल्का सा अहंकार या दानकर्ता होने) से भरे हुए होते है कि उन्होने ये दान किया, उस दान करने की ख़ुशी उनके चहरे पर साफ देखी जा सकती है, वो ये बात समाज के लोगों को भी बताकर अपने दानकर्ता होने को दिखना चाहेगा।
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मगर वही कन्या-दान करने वाले माता-पिता को देखना, चाहे वो गरीब हो, धनवान हो, समाज मे अच्छे रुतबे वाला हो, कितनी बड़े पद कर काम करने वाला हो, और तो और राजा ही क्यो न हो। देखना उन माता-पिता का चेहरा, हारे हुए इंसान की तरह, चहरे पर खुशी लिए मगर ह्रदय (दिल) में तड़फ लिए होता है और दान करने का कोई अभिमान या अंहकार नही,
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अपने अंदर एक दर्द लिए हुए वो अपनी कन्या-दान करते है। न ही इस दान के कोई दिखावे के कोई भाव, इस दान का अहसास वे माता-पिता ही कर सकते है जिन्होंने अपनी बेटी का कन्यादान किया हो। अब कुछ लोग (जिनको बेटी का सुख न मिला) कन्यादान का पुण्य कमाने के लिए किसी दूसरे के बेटी का कन्यादान करते है, मगर ये पुण्य तभी सम्भव है
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जब दानकर्ता का उस कन्या के साथ बेटी जैसा अहसास हो, उसके दान से आत्मा तक झकझोर जाये। यही कारण है कि कन्या-दान से महानतम दान कोई नही, संभवतः ये ही सबसे बड़ा दान है।
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🙏🚩 जय_माता_दी🚩🙏
विशेष ,,,, आप अपनी राय अवश्य दे ! हम उसका पूरा सम्मान करेंगे !
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भवसागर से पार होने के लिये मनुष्य शरीर रूपी सुन्दर नौका मिल गई है। सतर्क रहो कहीं ऐसा न हो कि वासना की भँवर में पड़कर नौका डूब जाय।
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स्वयं कमाओ, स्वयं खाओ यह प्रकृति है । (रजो गुण)
दूसरा कमाए, तुम छीन कर खाओ यह विकृती है।(तमो गुण )
स्वयं कमाओ सबको खिलाओ, यह देविक संस्कृति हैं ! (सतो गुण )
** देविक प्रवृतियों को धारण (Perception ) करे तभी आप देवलोक पाने के अधिकारी बनेंगे **
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हमेशा ध्यान में रखिये ---
" आप एक शुद्ध चेतना है यानि स्व ऊर्जा से प्रकाशित आत्मा ! माया (अज्ञान ) ने आपकी आत्मा के शुद्ध स्वरुप को छीन रखा है ! अतः माया ( अज्ञान ) से पीछा छुडाइये और शुद्ध चेतना को प्राप्त कर परमानन्द का सुख भोगिए !
विशेष,,,, आपके अज्ञान को दूर कर अग्निहोत्र के इस ज्ञान के प्रकाश को दे पाऊ /फेला पाऊ, यही मेरा स्वप्न है. यह आचरण मेरी निष्काम /निःस्वार्थ सोच का परिणाम है l प्रभु मेरी सहायता करे / मेरा मार्ग प्रशस्त करे.