आज का सुविचार
जीवात्मा ( जीव यानि मन + आत्मा )
१. मन जब शरीर से जुड़ जाता है तो शारीरिक/भौतिक सुखों की चाहत करने लगता है !
२. मन जब आत्मा से जुड़ जाता है तो आध्यात्मिक विचारों का उत्पादन करने लगता है और धर्म के मार्ग का अनुसरण करने लगता है / धर्म को धारण करता है !
३. मन जब परोपकार से जुड़ जाता है तो देवताओं का सानिध्य प्राप्त करता है अगर ऐसा व्यक्ति माँ सरस्वती की कृपा प्राप्त कर जाय एवं सौभाग्य जाग्रत हो जाय तो ब्रह्म ज्ञानी बन सकता है !
४. मन जब तामस ( काम ,क्रोध मद ,लोभ एवं मोह ), राजस ( राग एवं द्वेष ) की मनोवृतियों से मुक्ति पा लेता है तो वेदो में बताये मानव जीवन के अंतिम लक्ष्य "मोक्ष " को पाने के लिए पुरषार्थ करने की योग्यता अर्जित कर लेता है ! एसी अवस्था में वह सत्वगुण प्रवृतियों से भी मुक्त होकर परमात्मा में विलीन होने की योग्यता प्राप्त कर लेता है l
यही वह अवसर है जब ऐसा व्यक्ति प्रभु कृपा से आवागमन के बंधन से मुक्ति प्राप्त कर परम पद में लीन हो जाता है !
परन्तु आज के मानव के पास परलोक के बारे में न तो विचार करने की इच्छा होती है और न ही आध्यात्मिक ज्ञान होता है l एसा उसकी तामसिक मनोवृत्ति और तामसिक /राजसिक आहार के भक्षण के कारण होता है l
याद रखे मन का निर्माण आहार ( भोजन ) से होता है ! आहार प्रकृति से उतपन्न होता है और ये प्रकृति त्रिगुणात्मक ( सत्व, रज, एवं तम ) है !
मन के बारे में चिंतन एवं मनन कीजिये तभी आप परलोक में अपने लक्ष्य को पा सकते है/ सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर सकते है ! इस संबंध में अपनी चंद्र कुंडली का अध्ययन कर अपनी मनोवृतियों/ मनोविकारों का ज्ञान प्राप्त कर सकते है !
तामसिक /आसुरी प्रवर्तीया नरक गामी होती है, राजसिक मनुष्य योनि दिलाती है और सात्विक देव लोक ले जाती है l पर निर्गुण उपासना मोक्ष पद की प्राप्ति करवाती है lअतः आहार सोच समझकर खाए l उचित अनुचित, नेतिक अनेतिक का भेद समझकर ही आचरण करे l
🌹अन्यथा🌹
अपने पापों के लिए 🙏नरक🙏 ,,,,,,,
Choice is yours
जय मोक्षदायिनी माँ " तुलसी "
संपादन == नवीन कुमार सचदेव
मुख्य संचालक == देवलोक अग्निहोत्र
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भवसागर से पार होने के लिये मनुष्य शरीर रूपी सुन्दर नौका मिल गई है। सतर्क रहो कहीं ऐसा न हो कि वासना की भँवर में पड़कर नौका डूब जाय।
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स्वयं कमाओ, स्वयं खाओ यह प्रकृति है । (रजो गुण)
दूसरा कमाए, तुम छीन कर खाओ यह विकृती है।(तमो गुण )
स्वयं कमाओ सबको खिलाओ, यह देविक संस्कृति हैं ! (सतो गुण )
** देविक प्रवृतियों को धारण (Perception ) करे तभी आप देवलोक पाने के अधिकारी बनेंगे **
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हमेशा ध्यान में रखिये ---
" आप एक शुद्ध चेतना है यानि स्व ऊर्जा से प्रकाशित आत्मा ! माया (अज्ञान ) ने आपकी आत्मा के शुद्ध स्वरुप को छीन रखा है ! अतः माया ( अज्ञान ) से पीछा छुडाइये और शुद्ध चेतना को प्राप्त कर परमानन्द का सुख भोगिए !
विशेष,,,, आपके अज्ञान को दूर कर अग्निहोत्र के इस ग्यान के प्रकाश को दे पाऊ /फेला पाऊ, यही मेरा स्वप्न है. यह आचरण मेरी निष्काम /निःस्वार्थ सोच का परिणाम है l प्रभु मेरी सहायता करे / मेरा मार्ग प्रशस्त करे.
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