भगवान् विष्णु की क्षमाशीलता ,,,,,,,,
भृगु नाम के एक बड़े ही महान ऋषि हुए हैं , उनकी ख्याति आज भी अमर है! उन्होंने भगवान विष्णु की " क्षमाशीलता " की बहुत प्रशंसा सुनी थी ! उन्होंने एकदिन सोचा, क्यों ना चल कर उनकी क्षमाशीलता की जांच कर ली जाए ! ऐसा सोच कर वे भगवान विष्णु की क्षमा की जांच के लिए उनके पास पहुंचे !
जिस समय वे पहुंचे, भगवान विष्णु मां लक्ष्मी के साथ शेषनाग की शैय्या पर विश्राम कर रहे थे ! सारे लोकाचारों को छोड़कर वे वहां पहुंचे और ना आव देखा न ताव और बिना कुछ कहे सुने ही, विष्णु जी के सीने में जाकर जोर से लात मार दी ! मां लक्ष्मी इस घटना को देखकर आश्चर्यचकित रह गई ! सीने पर चोट पड़ते ही भगवान विष्णु उठ खड़े हुए, अचानक भृगु मुनि को अपने पास पाकर उनके पांव छू कर सीने से लगा लिया! भृगु मुनि तो क्रोध से भरे थे, चाहे लीला रूप से ही क्यों ना हो, कारण वे तो जानबूझकर जांच करने आए थे विष्णु की क्षमाशीलता की ! विष्णु भगवान उनके इस व्यवहार को देखकर चकित रह गए. विष्णु भगवान ने आगे पांव सहलाते हुए कहा – मुनिवर, आपके पांव तो बड़े ही कोमल है और मेरा सीना तो वज्र कठोर है. मुनिश्रेष्ठ ! आपके पांव को चोट तो नहीं आई ?
भगवान विष्णु की इस मर्मस्पर्शी ह्रदय को द्रवित करने वाली वाणी ने भृगु मुनि को बहुत ही चकित किया ! उनका क्रोध विष्णु भगवान की कोमल वाणी से द्रवित हुआ एवं पश्चाताप की अग्नि में जलने लगा ! वे तो सोच रहे थे कि विष्णु भगवान उनके इस दुर्व्यवहार के लिए, सीने पर लात मारने के लिए, बेहद क्रोधित होंगे और प्रतिकार रूप में जाने क्या विचार एवं आचरण करेंगे ? संभव है, बहुत ही क्रुद्ध हों और प्रतिकार रूप में अपने ढंग से दंडित करें पर यहां तो सबकुछ उलट था 1 क्रुद्ध होने की अपेक्षा देव स्वाभाव नारायण कोमल बने रहे ! भृगु ऋषि अपने इस व्यवहार से बड़े लज्जित हुए! विष्णु भगवान ने इतना ही नहीं किया, वरन् उन्होंने सीने से लगाकर आदर भाव दिया और आतिथ्य स्वीकार कर उन्हें सम्मान दिया और सादर विदा किया ! भृगु ऋषि ने स्वीकार किया कि भगवान विष्णु जैसी क्षमाशीलता अन्यत्र दुर्लभ है – "न भूतो न भविष्यति". ऐसा ना अतीत में हुआ और ना ही भविष्य में होने की संभावना है ! जब भी उनका स्मरण किया जाएगा विष्णु भगवान की क्षमाशीलता लोगों को इसके लिए प्रेरणा देगी और यह कहानी अमर रहेगी !
विष्णु और भृगु मुनि की इस घटना को लक्ष्य में रखकर रहीम ने अपने शब्दों में कहा है –
" क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात |
का रहीम हरि को घट्यो, ज्यों भृगु मारयो लात |"
विशेष ,,,, क्षमा एक देविक प्रवृति है , इसे अपने प्रारब्ध ( भाग्य ) में संचित करने के लिए क्षमाशील बने ! यह पुण्य आपको अनेक जन्मों में काम आएगा ! सहनशीलता एक दैवीय गुण है ! इस गुण के बढ़ने से आप अनेक परेशानियों से बच सकते है ! अतः इस गुण को अपने अंदर समृद्ध करो ! यह तभी संभव है जब आप अपने अंदर अहंकार को समाप्त करेंगे !
,,,,सच्चे संतो की वाणी से अमृत बरसता है , आवश्यकता है ,,,उसे आचरण में उतारने की ....
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धर्मशील व्यक्ति ,,,,,,,
जिमि सरिता सागर महँ जाहीं l
जद्यपि ताहि कामना नाहीं ll
तिमि सुख सम्पति बिनहिं बुलाये l
धर्मशील पहँ जाइ सुहाये ll
जैसे सरिता (नदी ) उबड-खाबड़, पथरीले स्थानों को पार करते हुए पूर्ण रूपेण निष्काम भाव से समुद्र में जा मिलती है, उसी प्रकार धर्म-रथ पर आसीन मनुष्य के पास उसके न चाहते हुए भी समस्त सुख-सम्पत्ति, रिद्धियाँ-सिद्धियाँ स्वत: आ जाती हैं, सत्य तो यह है कि वे उसकी दासिता ग्रहण करने के लिए लालायित रहती है l
" जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख !"
"एक माटी का दिया सारी रात अंधियारे से लड़ता है,
तू तो प्रभु का दिया है फिर किस बात से डरता है..."
हे मानव तू उठ और सागर (प्रभु ) में विलीन होने के लिए पुरुषार्थ कर ,,,,,,,,,
शरीर परमात्मा का दिया हुआ उपहार है ! चाहो तो इससे " विभूतिया " (अच्छाइयां / पुण्य इत्यादि ) अर्जित करलो चाहे घोरतम " दुर्गति " ( बुराइया / पाप ) इत्यादि !
परोपकारी बनो एवं प्रभु का सानिध्य प्राप्त करो !
प्रभु हर जीव में चेतना रूप में विद्यमान है अतः प्राणियों से प्रेम करो !
शाकाहार अपनाओ , करुणा को चुनो !
जय गौमाता की 🙏👏🌹🌲🌿