गोपाल की भक्ति ,,,,,,,,
.
उत्तर प्रांत की कमलावती नगरी में गोपाल नाम का एक ग्वाला रहता था। वह पढ़ा-लिखा नहीं था और उसने कथा-वार्ता भी नहीं सुनी थी।
.
दिन-भर गायों को जंगल में चराया करता था। दोपहर को स्त्री छाक पहुचा दिया करती थी।
.
गोपाल सीधा सरल और निश्चिंत था। उसे ‘राम-राम’ जपने की आदत पड़ गई थी सो उसका जप वह सुबह शाम थोड़ा-बहुत कर लेता था। इस प्रकार उसकी उम्र पचास वर्ष की हो गई।
.
बराबर वाले उसे चिढ़ाया करते थे: ‘राम-राम रटने से बैकुंठ के विमान का पाया हाथ नहीं आएगा।’
.
एक दिन गोपाल को उसके साथी चिड़ा रहे थे। उसी रास्ते एक संत जा रहे थे।
.
उन्होंने चिढ़ाने वालों से कहा : ”भाई ! तुम लोग बड़ी गलती कर रहे हो। भगवान के नाम की महिमा तुम नहीं जानते।
.
यह बूढ़ा चरवाहा यदि इसी प्रकार श्रद्धा से भगवान का नाम लेता रहेगा तो इसे संसार-सागर से पार कर देने वाले गुरु अवश्य मिल जाएंगे। भगवान का नाम तो सारे पापों को तुरंत भस्म कर देता है।
.
गोपाल को अब विश्वास हो गया : ‘मुझे अवश्य गुरु मिलेंगे और उनकी कृपा से मैं भगवान के दर्शन कर सकूंगा।’ वह अब बराबर गुरुदेव की प्रतीक्षा करने लगा।
.
वह सोचता : ‘गुरुजी को मैं झट संत के बताए लक्षणों से पहचान लूंगा। उन्हें ताजा दूध पिलाऊंगा। वे मुझ पर राजी हो जाएंगे।
.
मेरे गुरुजी बड़े भारी ज्ञानी होंगे। भला उनका ज्ञान मेरी समझ में तो कैसे आ सकता है। मैं तो उनसे एक बात पूंछूगा। मुझसे बहुत-सी झंझट नहीं होगी।
.
गोपाल की उत्कंठा तीव्र थी। वह बार-बार रास्ते पर जाकर देखता पेड़ पर चढ़कर देखता लोगों से पूछता : ‘कोई संत तो इधर नहीं आए ?’
.
कभी-कभी व्याकुल होकर गुरुजी के न आने से रोने लगता। अपने अनदेखे अनजाने गुरु को जैसे वह खूब जान चुका है।
.
एक दिन इसी प्रकार की प्रतीक्षा में गोपाल ने दूर से एक संत को आते देखा। उसका हृदय आनंद से पूर्ण हो गया। उसने समझ लिया कि उसके गुरुदेव आ गए।
.
उन्हें ताजा दूध पिलाने के लिए झटपट वह गाय दूहने बैठ गया। इतने में वे संत पास आ गए।
.
दूध दूहना अधूरा छोड़कर एक हाथ में दूध का बर्तन और दूसरे में अपनी लाठी लिए वह उनके पास खड़ा होकर बोला : ”महाराज ! तनिक दूध तो पीते जाओ।
.
साधु ने आतुर शब्द सुना तो रुक गए। गोपाल के हाथ तो फंसे थे संत के सामने जाकर उसने मस्तक झुकाया और सरल भाव से बोला : ”लो ! यह दूध पी लो और मुझे उपदेश देकर कृतार्थ करो।
.
मुझे भवसागर से पार कर दो। महाराज ! अब मैं तुम्हारे चरण नहीं छोडूंगा। दूध का बर्तन और लाठी एक ओर रखकर वह संत के चरणों से लिपट गया।
.
उसके नेत्रों से झर-झर औसू गिरने लगे। संत एक बार तो यह सब देखकर चकित हो गए।
.
फिर गोपाल के सरल भक्ति भाव को देखकर उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने गोपाल से घर चलकर स्नान करके दीक्षा लेने को कहा।
.
गोपाल बोला- महाराज ! मुझे तो वन में रहकर गाए चराना ही आता है। स्नान-पूजा तो मैं जानता नहीं। घर भी कभी-कभी जाता हूं। मैं गँवार हूं।
.
मुझसे बहुत बातें सधेंगी भी नहीं। मैं तो उन्हें भूल ही जाऊंगा। मुझे तो आप कोई एक बात बतला दें और अभी यहीं बतला दें। मैं उसका पालन करूंगा।
.
ऐसे भोले भक्त पर तो भगवान भी रीझ जाते हैं। संत ने मानसिक आसन-शुद्धि आदि करके अपने कमंडल के जल से उस पर छींटा मारा और मंत्र देकर बोले...
.
देखो ! अब तुम्हें जो कुछ खाना हो भगवान गोविंद का भोग लगाकर ही खाया करो। इसी एक साधन से तुम पर गोविंद भगवान की कृपा हो जाएगी।
.
गोपाल ने पूछा : महाराज ! मैं आपकी आज्ञा का पालन तो करूंगा ? पर गोविंद भगवान मुझे कहां मिलेंगे जो उन्हें रोज भोग लगाकर भोजन करूं ?
.
संत ने भगवान के स्वरूप का वर्णन करके कहा : ”भगवान तो सब जगह हैं सबके भीतर हैं। तुम उनके रूप का ध्यान करके उन्हें पुकार लेना और उनको भोग लगाना।
.
भूलना मत ! उन्हें भोग लगाए बिना कोई पदार्थ मत खा लेना। यह उपदेश देकर गोपाल का दूध ग्रहण करके महात्मा जी चले गए।
.
दोपहर को गोपाल की स्त्री आई और छाक देकर चली गई। गोपाल को अब गुरुजी की बात स्मरण आई।
.
एकांत में जाकर पत्ते पर रोटियां परोस कर तुलसी दल डालकर वे गोविंद भगवान का ध्यान करते हुए प्रार्थना करने लगे..
.
हे गोविंद ! लो ये रोटियां रखी हैं। इनका भोग लगाओ। मेरे गुरुदेव कह गए हैं कि भगवान को भोग लगाकर जो प्रसादी बचे वही खाना।
.
मुझे बहुत भूख लगी है किंतु तुम्हारे भोग लगाए बिना मैं नहीं खाऊंगा। देर मत करो। जल्दी आकर भोग लगाओ।
.
गोपाल प्रार्थना करते-करते थक गया संध्या हो गई पर गोविंद नहीं पधारे।
.
जब भगवान ने भोग नहीं लगाया तब गोपाल कैसे खा ले। उसने रोटियां जगंल में फेंक दीं और गोशाला लौट आया।
.
गोपाल का शरीर उपवास से सूखता चला गया। इसी प्रकार अट्ठारह दिन बीत गए। खडे होने में चक्कर आने लगा। आखें गड्ढों में घुस गईं।
.
स्त्री-पुत्र घबरा कर बार-बार कारण पूछने लगे पर गोपाल कुछ नहीं बताता। वह सोचता : एक दिन मरना तो है ही गुरु महाराज की आज्ञा तोड़ने का पाप करके क्यों मरूं।
.
मेरे गुरुदेव की आज्ञा तो सत्य ही है। यहां न सही मरने पर परलोक में तो मुझे भगवान के दर्शन होंगे।
.
उपवास को नौ दिन और बीत गए। आज सत्ताईस दिन हो चुके। गोपाल के नेत्र अब सफेद हो गए हैं। वह उठकर बैठ भी नहीं सकता।
.
आज जब उसकी स्त्री छाक लेकर आई तब गोशाला से जाना ही नहीं चाहती थी।
.
उसे किसी प्रकार गोपाल ने घर भेजा। बड़ी कठिनता से छाक परोस कर वह भूमि पर लेट गया। आज बैठा न रह सका।
.
उसे आज अंतिम प्रार्थना करनी है वह जानता है कि कल फिर प्रार्थना करने को देह में प्राण नहीं रहेंगे। आज वह गोविंद भगवान को रोटी खाने के लिए हृदय के अंतिम बल से पुकार रहा है।
.
यह क्या हुआ ? तभी तेज प्रकाश गोशाला में आ गया ! गोपाल ने देखा कि उसके सामने गुरुजी के बताए वही गोविंद भगवान खड़े हैं।
.
एक शब्द तक उसके मुख से नहीं निकला। भगवान के चरणों पर उसने सिर रख दिया। उसके नेत्रों की धारा ने उन लाल-लाल चरणों को धो दिया।
.
भगवान ने भक्त को गोद में उठा लिया और बोले : गोपाल ! तू रो मत। देख मैं तेरी रोटियां खाता हूं। मुझे ऐसा ही अन्न प्रिय है। अब तू यहां से घर जा।
.
अब तुझे कोई चिंता नहीं। अपने बंधु-बांधवों के साथ सुखपूर्वक जीवन बिता ! अंत में तू मेरे गोलोक-धाम आएगा।
.
भगवान ने उसकी रोटियां खाईं और उसके लिए प्रसाद छोड्कर अंतर्धान हो गए।
.
गोपाल ने ज्यों ही उस प्रसाद को ग्रहण किया उसका हृदय आनंद से भर गया। उसकी भूख-प्यास दुर्बलता थकावट सब क्षण-भर में चली गई।
.
आज सत्ताईस दिन के उपवास की भूख-प्यास तथा दुर्बलता ही नहीं दूर हुई अनन्त काल की दुर्बलता दूर हो गई।
भवसागर से पार होने के लिये मनुष्य शरीर रूपी सुन्दर नौका मिल गई है। सतर्क रहो कहीं ऐसा न हो कि वासना की भँवर में पड़कर नौका डूब जाय।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
स्वयं कमाओ, स्वयं खाओ यह प्रकृति है । (रजो गुण)
दूसरा कमाए, तुम छीन कर खाओ यह विकृती है।(तमो गुण )
स्वयं कमाओ सबको खिलाओ, यह देविक संस्कृति हैं ! (सतो गुण )
** देविक प्रवृतियों को धारण (Perception ) करे तभी आप देवलोक पाने के अधिकारी बनेंगे **
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,🚩🙏🙏🚩
हमेशा ध्यान में रखिये ---
" आप एक शुद्ध चेतना है यानि स्व ऊर्जा से प्रकाशित आत्मा ! माया (अज्ञान ) ने आपकी आत्मा के शुद्ध स्वरुप को छीन रखा है ! अतः माया ( अज्ञान ) से पीछा छुडाइये और शुद्ध चेतना को प्राप्त कर परमानन्द का सुख भोगिए !
विशेष,,,, आपके अज्ञान को दूर कर अग्निहोत्र के इस ग्यान के प्रकाश को दे पाऊ /फेला पाऊ, यही मेरा स्वप्न है. यह आचरण मेरी निष्काम /निःस्वार्थ सोच का परिणाम है l प्रभु मेरी सहायता करे / मेरा मार्ग प्रशस्त करे.
मुख्य संचालक देवलोक अग्निहोत्र
जिस प्रकार एक छोटे से बीज़ में विशाल वट वृक्ष समाया होता है उसी प्रकार आप में अनंत क्षमताएं समायी हुईं हैं l आवश्यकता है उस ज्ञान की / अपना बौधिक एवं शैक्षणिक स्तर को उन्नत करने की जिसे प्राप्त कर आप महानता प्राप्त कर सके !
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
आओ हम सब वृक्ष लगाऐं धरती का श्रृंगार करें।
मातृभूमि को प्रतिपल महकाऐं,जीवन से हम प्रेम करें।।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Note ; कृपया पोस्ट के साथ ही #देवलोक_अग्निहोत्र का page भी लाइक करें और इहलोक में श्रेष्ठतम पुण्यो का संचय करने के लिए अति उत्तम ज्ञान प्राप्त करे ! देवलोक अग्निहोत्र सदैव आपको नेक एवं श्रेष्ठ कर्मों को करने के लिए प्रेरित करते रहेंगे ताकि अति उत्तम पुण्य कमाए और परलोक में इच्छानुसार लोक प्राप्त करे. जय माता गौ गंगा गायत्री.
प्रकृति का संरक्षण एवं संवर्धन ईश्वर की श्रेष्ठ आराधना है !एक पेड़ लगाना, सौ गायों का दान देने के समान है lपीपल का पेड़ लगाने से व्यक्ति को सेंकड़ों यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है l
छान्दोग्यउपनिषद् में उद्दालक ऋषि अपने पुत्र श्वेतकेतु से आत्मा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वृक्ष जीवात्मा से ओतप्रोत होते हैं और मनुष्यों की भाँति सुख-दु:ख की अनुभूति करते हैं। हिन्दू दर्शन में एक वृक्ष की मनुष्य के दस पुत्रों से तुलना की गई है-
'दशकूप समावापी: दशवापी समोहृद:।
दशहृद सम:पुत्रो दशपत्र समोद्रुम:।। '
इस्लामी शिक्षा में पेड़ लगाने और वातावरण को हराभरा रखने पर जोर दिया गया है। पेड़ लगाने को सदका अथवा पुण्य का काम कहा गया है। पेड़ को पानी देना किसी मोमिन को पानी पिलाने के समान बताया गया है।
देवलोक अग्निहोत्र आपको सद्गुरु की तरह सन्मार्ग दिखाने का हर सम्भव प्रयास करेगा !
कोई न सतगुरु सों परोपकारी जग माहिं।
मैलो मन-बुद्धि संवार, यम ते लेत छुड़ाहिं।।
जय गौ गंगा गायत्री त्रिमाता की🚩☘️☘️🚩