क्या राम कथा जीवन के दोष मिटाती है?
राम राज्य के लिए कहा उत्तर काण्ड में कहा गया है-
"अल्प मृत्यु नहिं कवनिउ पीरा,सब सुन्दर सब बिरुज सरीरा
नहिं दरिद्र कोउ दुखी ना दीना नहिं कोउ अबुध ना लच्छन हीना"
अर्थात - छोटी अवस्था में मृत्यु नहीं होती ना किसी को कोई पीड़ा होती है सभी के शरीर सुन्दर और नीरोग है ना कोई दरिद्र है न दुखी है और न दीन ही है ना कोई मूर्ख है और ना शुभ लक्षणों से हीन ही है.
सब कुछ राम राज्य में है पर जब तक दोष है तब तक दरिद्रता मिट जाए भूख दीनता हीनता सब मिल जाए पर दोष नहीं मिटा तो सब बेमानी है और राम के रहते भी दोष थे जगन्माता जानकी में ही लोगो में दोष ढूँढ लिए,भगवान जानते थे जानकी जी निर्दोष है पर लोगो के मुह बंद नहीं कर सकते थे.इसलिए जीवन निर्दोष चाहिये.
ये सारी चीजे तो रावण के राज्य में भी थी लोगो के तो घर में सोना हुआ करता है परन्तु रावण की लंका में तो सभी के घर सोने के थे.कोई दरिद्र,भूखा,नहीं था,दैहिक दैविक भौतिक तप किसी को नहीं थे क्योकि सारे देवता तो रावण के सेवक बने हुए थे,जब चाहे पानी बरसा ले,जब चाहे जो करे.
राम राज्य तो केवट से पूँछो - नाथ आजु मै काह न पावा,मिटे दोष दुःख दारिद दावा"
अर्थात - हे नाथ ! आज मैंने क्या नहीं पाया मेरे "दोष" ,दुःख और दरिद्रता की आग आज बुझ गई है.
शान्ति मौन रहने से नहीं मिलती बाजार से खरीदी नहीं जाती,गुरु के पास भी नहीं मिलती, शान्ति माँगी नहीं जाती खरीदी नहीं जाती,शान्ति की तो फसल उगाई जाती है त्याग और तपस्या से प्रेम के जल से यदि अशांति है तो ये चिंता मत करो कि शान्ति कैसे आये ?चिंतन ये करो कि अशांति हो क्यों रही है कारण खोजिये?कही मन दोष पूर्ण तो नहीं ? जीवन में कही दोष तो नहीं ?
जिसके जीवन में सब कुछ है पर दोष नहीं मिटा तो अभी बहुत कुछ सुधारने की जरुरत है,क्या ?मन को दोष मुक्त करना है,मन जब तक दोष पूर्ण रहता है तब तक अशुद्ध रहता है मन शुद्ध चाहिये,आनंदित चाहिये. और मन भजन से शांत नहीं होता, बल्कि जब मन शांत होता है तब भजन होता है अशांत मन से तो माला केवल उगलियों पर फिरती है और भगवान को निर्मल मन ही चाहिये-
"निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट, छल चित्त न भावा"
इसलिए जब जीवन,मन दोषपूर्ण होता है तो राम कथा जीवन के दोष मिटाती है.
|| जय श्री राम ||
मंत्र धारणा यों कर , विधि से ले कर नाम
जपिये निश्चय अचल से , शक्ति धाम श्री राम
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"लाभ अवधि सुख अवधि न दूजी |
तुम्हरें दरस आस सब पूजी ||
अब करि कृपा देहु बर एहू |
निज पद सरसिज सहज सनेहू ||"
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( मेरे लाभ और सुख की सीमा अन्य कोई नही है, आपके दर्शनों से मेरी सब आशाएं पूरी हो गई हैं |अब मुझे कृपा करके यह बरदान दें कि आपके चरण-कमलों में सदैव सहज सनेह बना रहे | )
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