*‼️🙏जय श्री हरि 🙏‼️*
‼️ माया महा ठगिनी ‼️
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भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने मित्र सुदामा को बहुत सारी सम्पत्ति दी लेकिन सुदामा तो अब और अधिक भक्ति करने लगे। वे अब हर समय परमात्मा के ध्यान में ही निमग्न रहते।
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आनन्दसिंधु प्रभु सखा रूप में,
मिल जाये तो क्या कहना ?
उसके आगे फिर शेष नहीं,
रह जाता है कुछ भी लहना।।
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एक दिन सुदामा ने मन में सोचा, हर तरफ माया की बातें हो रही हैं पर माया मुझे क्यों नहीं दिखायी देती है। यह माया पता नहीं कैसी होगी ? उन्होंने भगवान् श्रीकृष्ण से कहा—‘मुझे अपनी माया दिखाइए।
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भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, तुम मुझे भूल जाओ तो तुम्हें माया दिखाई देगी।
ईश्वर ज्ञान और माया अज्ञान का प्रतीक है। जो परमात्मा के ध्यान में तल्लीन रहता है, उसे माया कैसे दिखाई देगी ?
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माया महा ठगिनी हम जानी
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भगवान् श्रीकृष्ण ने सुदामा को अपने मायाजाल में मोहित करने की ठानी।
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श्रीकृष्ण और सुदामा गोमती नदी में स्नान करने गए। संध्योपासना का समय हो रहा था इसलिए जल्दी-जल्दी स्नान करने में सुदामा श्रीकृष्ण को भूल गए।
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भगवान् श्रीकृष्ण ने अपनी माया दिखाई। जैसे ही सुदामा ने नदी में डुबकी लगाई कि गोमती नदी में बाढ़ आ गई और सुदामा बाढ़ के प्रवाह में खिंचते हुए चले गए। पानी में डूबते-तैरते हुए वे एक घाट के पास पहुंचे और घाट पर चढ़ गए। उसी समय एक हाथी ने आकर उनके गले में हार पहना दिया।
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उस गांव के राजा की मृत्यु हो गयी थी और वहां ऐसा रिवाज था कि हाथी जिसके गले में हार पहना देता, उसे राजा बना दिया जाता था। सुदामा को राजा बना दिया गया और राजकुमारी से उनका विवाह हो गया। भगवान् की माया से मोहित हुए सुदामा सब कुछ भूल गए। पुरानी किसी चीज की उन्हें स्मृति नहीं रही। उनकी कई संतानें हुईं।जब उनकी पत्नी रानी की मृत्यु हो गयी इससे दु:खी होकर सुदामा रोने लगे।
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नगर के संभ्रान्त लोगों ने कहा, आप रोइये मत, रानी जहां गईं हैं, वहां आपको भी पहुंचा देंगे। उस नगर में ऐसा रिवाज था कि स्त्री की मृत्यु होने पर पुरुष को भी उसके साथ चिता में चढ़ा दिया जाता था।
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लोग सुदामा को श्मशान ले गए। यह सब देखकर सुदामा घबरा गए और भय और घबराहट में प्रभु का स्मरण करने लगे।
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दुख में सुमिरन सब करें,
सुख में करें न कोय।
जो सुख में सुमिरन करै
तो दु:ख काहे को होय ।। (कबीर)
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भगवान् का स्मरण करने ही उनके नेत्रों पर चढ़ा माया (अज्ञान) का परदा हट गया और उनको याद आया कि मैं तो सुदामा ब्राह्मण हूँ। मुझे संध्या करनी चाहिए। संध्योपासना के लिए जैसे ही उन्होंने नदी में डुबकी लगायी वे गोमती नदी में उसी स्थान पर पहुंच गए।
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श्रीकृष्ण स्नान करके पीताम्बर धारण भी नहीं कर पाये थे कि सुदामा रोते-रोते उनके पास आ पहुंचे।
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श्रीकृष्ण ने पूछा, मित्र रोते क्यों हो ?
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सुदामा कहने लगे, ये मेरी पत्नी, मेरा राज्य, सब कहां चला गया ? यह सब क्या है ?
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भगवान् श्रीकृष्ण ने सुदामा को समझाते हुए कहा, मित्र ! यह सब मेरी माया है। मेरे बिना जो कुछ भी दिखाई देता है, वह मेरी माया है। माया का आवरण चारों ओर फैला हुआ है। माया स्वयं नाचती है और मनुष्य को अपने वश में करके नचाती है।
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इसीलिए संतों ने माया को ‘नर्तकी’ कहा है। इस नर्तकी माया के जाल से बचना है तो ‘नर्तकी’ का उल्टा कर दो।
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जो शब्द बनेगा वह है ‘कीर्तन’ अर्थात् जो भगवान् का कीर्तन व नाम-स्मरण करता है, उसे माया रुलाती नहीं है।
🙏जय जय श्री राधे🙏