तामसिक प्रवृतिया ,,,,,,,
( मानव जीवन में तामस का उदय अमंगलकारी होता है और महाशिवरात्रि का व्रत इस अमंगल को रोकने के लिए किया जाता है ! पवित्र गीता के अनुसार पशु पक्षी तामसिक प्रवृति के होते है और यह योनि भुक्त योनि है जबकि मनुष्य योनि "कर्म योनि " है ! इस भुक्त योनि में दुःख ही दुःख है ! तामसिक आहार खाने-पीने से तामसिक प्रवृतियों का निर्माण होता है l तामसिक प्रवृति होने पर जीवत्मा को पशु योनि में जन्म लेना ही पड़ता है ! अतः मनुष्य योनि में रहते हुए कुछ ऐसे पुण्य कमाओ जिससे इस योनि में नहीं जाना पड़े )
एक राजा बड़ा ही तामसिक प्रवृत्ति का था और उस राजा का अधिकाँश समय निद्रा और भोग विलास मे ही व्यतीत होता था । परन्तु उसके जीवन मे एक बड़ी अच्छाई थी की वो जब तक गौ माता को अपने हाथों से रोटी न दे देता तब तक वो चाहे भूखा मर जाता पर कुछ भी ग्रहण नही करता था ।
एक बार शिकार खेलते खेलते घनघोर जंगल मे जा पहुँचा उसके साथ उसके कुछ साथी भी थे और पूरी रात वे जंगल मे इधर उधर भटकते रहे पर रास्ता न मिला ।
फिर वो उसी जंगल मे सो गये जब सुबह हुई तो चलते चलते बहुत दुर निकल गये और सभी भुख से व्याकुल थे उधर से कोई सन्तों का दल आ रहा था सभी उनके पास पहुँचे सन्तों के पास खाने की कुछ सामग्री थी तो सन्तों ने उन्हे खाने को दिया पर राजा ने नहीं खाया और कहा हॆ महात्माओं मेरे जीवन मे अनेक दुर्गुण है पर मेरा एक नियम है की जब तक मैं अपने हाथों से गौ माता को रोटी न खिलाऊँ तब तक मैं कुछ ग्रहण नही करूँगा और फिर वो सभी जैसे तैसे अपने नगर पहुँचे फिर राजा ने गौ माता को रोटी खिलाई और फिर स्वयं ने भोजन ग्रहण किया ।
संयोगवश इस दिन के बाद राजा को रोज एक स्वपन आने लगा फिर राजा किसी पहुँचे हुये सन्त के पास गये और राजा ने कहा हॆ महात्मन मैं रोज एक स्वपन देखता हुं
की तीन व्यक्ति घोडे के साथ चल रहे है जिसमे पहला व्यक्ति घोड़े पर बैठकर आनन्दमय मुद्रा मे जा रहा है ! दूसरा व्यक्ति घोड़े को कोडो से पीट रहा है वो घोड़े पर बैठा है पर वो नीचे गिरता है फिर घोड़े पर बैठता है और *** घोड़े की कौडे से पिटाई करता है**** मार खाकर घोडा प्रसन्न होता है और सही चलता है ! तीसरा जो व्यक्ति है उसे घोड़े खींच रहे है और वो लहूलुहान हो रहा है कभी घोड़ा इधर भगाये तो कभी उधर भगाये और घोड़ा भी लड़ प्यार में है पर वो व्यक्ति रो रहा है ।
(****घोड़े की कोड़ो से पिटाई का तात्पर्य है अपनी इन्द्रियों को वश में करना )
पर सबसे बड़े आश्चर्य की बात ये है की जिन घोडो की पिटाई हो रही है वो बड़े ही आनंदमुद्रा मे चल रहे है और वो घुड़सवार भी आनन्द मे है और जो कभी नीचे गिरता कभी वापिस बैठता वो थोड़ा सा दुःखी होते है पर जैसे ही घोड़े को कौडे लगाता है घोड़ा और घुड़सवार दोनो खुश हो जाते है और तीसरा जो है घोड़े को बहुत ही लाड़प्यार से रख रहा है पर घोडा भी दुःखी और घोड़ेवाला भी दुःखी है ये क्या रहस्य है देव आप मुझ पर दया कीजिये और समझाये नाथ ।
महात्माजी ने कहा
हे राजन तीन तरह की प्रवर्तियां और तीन तरह के व्यक्ति है ।
सात्विक, राजसिक और तामसिक
जिनके जीवन मे सात्विकता की प्रधानता है वो संयम रूपी कौडे से इन्द्रिय रूपी घोडो की पिटाई करते है और जो इन्द्रियों पर राज करते है वही आनन्द मे है घोड़ा और घुड़सवार दोनो ही आनन्द मे है ।
दूसरे वो है जो इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने की पूरी पूरी कोशिश कर रहे है और वो भी संयम रूपी कौडे से पिटाई कर रहे है ।
और तीसरे वो जिनके जीवन मे तामसिकता प्रधान है जो भोग और विलास मे डूबे हुये है इंद्रियों ने उन्हे अपना गुलाम बना रखा है और ऐसे लोग रोते रोते ही चले जाते है ।
राजा बोलै == क्षमा हॆ नाथ पर मैं तो एक तामसिक प्रवर्ति का मानव हुं और ऐसा दिव्य स्वपन मुझे कैसे आया ?
महात्मा जी - हॆ राजन आपने जो गाय को रोटी देकर फिर कुछ खाने का जो नेक नियम बना रखा है और परीक्षा काल मे भी जब आप अपने नियम के प्रति अडिग रहे तो, भगवान ने आप पर दया करके आपको ये स्वपन दिखाया है । ( याद रखे गौ माता में ३३ कोटि देवता है यानि ३३ प्रकार के देवता == वे है १२ आदित्य + ११ रूद्र + ८ वसु + २ अश्वनी कुमार योग ३३ ) इन देवताओं ने राजा को स्वप्न दिया !
महात्मा जी ने राजा को एक पाठ पढाया।
देखना इन्द्रियों के न घोड़े भागे !
इनपे दिन रात संयम के कौडे पड़े ।
मन को विषयों से तुम हटाते चलो,
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो ।
साधना- मार्ग पे आगे बढ़ते चलो,
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो ।
राह मे आयेगी बाधायें बहुत,
पर यु हार मान के रुकना नहीं ,,
बहती नदी की तरह तुम लड़ते चलो ।
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो ।।
देखना इन्द्रियों के न घोड़े भागे,
इन पे दिन रात संयम के कौडे पड़े ।।
उस दिन से राजा ने जीवन को सात्विकता की ओर मोड़ दिया,
राजा था तो तामसिक पर उसने अथक प्रयासों से पूरे जीवन को बदलकर रख दिया ।
अच्छे कर्म और अच्छे नियम के बिना कुछ नही है जीवन मे एक सारगर्भित नियम जरूर बनाना और उस नियम को कभी भंग मत होने देना फिर देखना एक दिन वो हमारे बन्द भाग्य के दरवाजे कैसे खोलता है ।।
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भवसागर से पार होने के लिये मनुष्य शरीर रूपी सुन्दर नौका मिल गई है। सतर्क रहो कहीं ऐसा न हो कि वासना की भँवर में पड़कर नौका डूब जाय।
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स्वयं कमाओ, स्वयं खाओ यह प्रकृति है । (रजो गुण)
दूसरा कमाए, तुम छीन कर खाओ यह विकृती है।(तमो गुण )
स्वयं कमाओ सबको खिलाओ, यह देविक संस्कृति हैं ! (सतो गुण )
** देविक प्रवृतियों को धारण (Perception ) करे तभी आप देवलोक पाने के अधिकारी बनेंगे **
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हमेशा ध्यान में रखिये ---
" आप एक शुद्ध चेतना है यानि स्व ऊर्जा से प्रकाशित आत्मा ! माया (अज्ञान ) ने आपकी आत्मा के शुद्ध स्वरुप को छीन रखा है ! अतः माया ( अज्ञान ) से पीछा छुडाइये और शुद्ध चेतना को प्राप्त कर परमानन्द का सुख भोगिए !
विशेष,,,, आपके अज्ञान को दूर कर अग्निहोत्र के इस ग्यान के प्रकाश को दे पाऊ /फेला पाऊ, यही मेरा स्वप्न है. यह आचरण मेरी निष्काम /निःस्वार्थ सोच का परिणाम है l प्रभु मेरी सहायता करे / मेरा मार्ग प्रशस्त करे.
मुख्य संचालक देवलोक अग्निहोत्र
जिस प्रकार एक छोटे से बीज़ में विशाल वट वृक्ष समाया होता है उसी प्रकार आप में अनंत क्षमताएं समायी हुईं हैं l आवश्यकता है उस ज्ञान की / अपना बौधिक एवं शैक्षणिक स्तर को उन्नत करने की जिसे प्राप्त कर आप महानता प्राप्त कर सके !
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आओ हम सब वृक्ष लगाऐं धरती का श्रृंगार करें।
मातृभूमि को प्रतिपल महकाऐं,जीवन से हम प्रेम करें।।
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Note ; कृपया पोस्ट के साथ ही #देवलोक_अग्निहोत्र का page भी लाइक करें और इहलोक में श्रेष्ठतम पुण्यो का संचय करने के लिए अति उत्तम ज्ञान प्राप्त करे ! देवलोक अग्निहोत्र सदैव आपको नेक एवं श्रेष्ठ कर्मों को करने के लिए प्रेरित करते रहेंगे ताकि अति उत्तम पुण्य कमाए और परलोक में इच्छानुसार लोक प्राप्त करे. जय माता गौ गंगा गायत्री.
प्रकृति का संरक्षण एवं संवर्धन ईश्वर की श्रेष्ठ आराधना है !एक पेड़ लगाना, सौ गायों का दान देने के समान है lपीपल का पेड़ लगाने से व्यक्ति को सेंकड़ों यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है l
छान्दोग्यउपनिषद् में उद्दालक ऋषि अपने पुत्र श्वेतकेतु से आत्मा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वृक्ष जीवात्मा से ओतप्रोत होते हैं और मनुष्यों की भाँति सुख-दु:ख की अनुभूति करते हैं। हिन्दू दर्शन में एक वृक्ष की मनुष्य के दस पुत्रों से तुलना की गई है-
'दशकूप समावापी: दशवापी समोहृद:।
दशहृद सम:पुत्रो दशपत्र समोद्रुम:।। '
इस्लामी शिक्षा में पेड़ लगाने और वातावरण को हराभरा रखने पर जोर दिया गया है। पेड़ लगाने को सदका अथवा पुण्य का काम कहा गया है। पेड़ को पानी देना किसी मोमिन को पानी पिलाने के समान बताया गया है।
जय गो गंगा गायत्री माता की 🙏🏼🙏🏼