सरस्वती देवी प्रमुख देवियों में से एक हैं
सरस्वती हिन्दू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। वे ब्रह्मा की मानसपुत्री हैं जो विद्या की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। इनका नामांतर 'शतरूपा' भी है। इसके अन्य पर्याय हैं, वाणी, वाग्देवी, भारती, शारदा, वागेश्वरी इत्यादि। ये शुक्लवर्ण, श्वेत वस्त्रधारिणी, वीणावादनतत्परा तथा श्वेतपद्मासना कही गई हैं। """ इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है। """" माघ शुक्ल पंचमी को इनकी पूजा की परिपाटी चली आ रही है। देवी भागवत के अनुसार ये ब्रह्मा की स्त्री हैं। ( टिपण्णी -- देवों का मानव रूप की तरह भौतिक शरीर नहीं होता है अतः पत्नी ,बेटी एवं माँ जैसे रिश्ते उनके आपसी सात्विक सम्बन्धो को दर्शाता है ! यहाँ पत्नी का तात्पर्य " ब्रह्मा जी का पूरक " होना है यानि वे ब्रह्मा जी के कार्य "रचना एवं निर्माण " में विद्या की देवी सहायक एवं पूरक का कार्य करती है अतः पत्नी कहा गया है ! कृपया इसे विषय वासना से ना जोड़े ! वे मानस पुत्री भी कही गई है ! विषय वासना केवल प्राणी जगत (भौतिक शरीर धारण करने वाले प्राणियों ) की तामसिक इच्छाएं है !
माता सरस्वती को साहित्य, संगीत, कला की देवी माना जाता है। उसमें विचारणा, भावना एवं संवेदना का त्रिविध समन्वय है। वीणा संगीत की, पुस्तक शिक्षा की और मयूर वाहन कला की अभिव्यक्ति है। लोक चर्चा में सरस्वती को शिक्षा की देवी माना गया है। पशु को (पशु की तामसिक व्रती होती है ) मनुष्य बनाने का - अंधे ( अँधा अनपढ़ होने का प्रतीक है ) को नेत्र (नेत्र शिक्षित होने का प्रतीक है ) मिलने का श्रेय शिक्षा को दिया जाता है। मनन से मनुष्य बनता है। मनन बुद्धि का विषय है। इस उपलब्धि के बिना मनुष्य को पशु की तरह वनमानुष जैसा जीवन बिताना पड़ता है।
कहते हैं कि महाकवि कालिदास, वरदराजाचार्य, वोपदेव आदि मंद बुद्धि के लोग सरस्वती उपासना के सहारे उच्च कोटि के विद्वान् बने थे।
सरस्वती वंदना,,,,,,,,,
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥2॥
जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥1॥
शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत् में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान् बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥2॥
विशेष ,,, माता सरस्वती का एक नाम वाणी है अतः वाणी को असत्य (झूट बोलना ) एवं हिंसा ( गाली गलोच ) से दुरूपयोग ना करे ! इससे माता सरस्वती रुष्ट होती है एवं "अविद्या " का श्राप प्राप्त होता है ! वाणी को सत्य , पवित्र एवं मिठास ( यानि विनम्र ) बनाने से माता प्रसन्न होती है और विद्या प्राप्ति का वरदान प्राप्त होता है क्योंकि माता सत्वगुणो से युक्त है ! धर्म को धारण ( Perception ) कीजिये और माता का आशीर्वाद प्राप्त कीजिये !
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भवसागर से पार होने के लिये मनुष्य शरीर रूपी सुन्दर नौका मिल गई है।
सतर्क रहो कहीं ऐसा न हो कि वासना की भँवर में पड़कर नौका डूब जाय।
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अपने अन्तःकरण में परोपकार की पवित्र भावना उत्पन्न करने के लिए गाय का दूध पीए, मक्खन, घृत , ऋतु फल खाये, सूखे मेवे, शहद, गन्ना एवं जेविक खाद से उत्पन्न अन्न ( सत्व गुण युक्त )खाये जिससे आपका मन देविक विचार उत्पन्न करे l आप भाग्यशाली है कि ये ज्ञान ( पवित्र गीता अध्याय १४ वर्णित " सृष्टि त्रिगुणात्मक == सत्व, रज, तामस ) केवल सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथो में लिपिबद्ध है l दुनिया के और किसी धर्म के पास नहीं है l अतः अपने आप को गौरवांवित महसूस करें l
इस प्रकार आप नरक जाने से बच सकते हैं l
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स्वयं कमाओ, स्वयं खाओ यह प्रकृति है । (रजो गुण)
दूसरा कमाए, तुम छीन कर खाओ यह विकृती है।(तमो गुण )
स्वयं कमाओ सबको खिलाओ, यह देविक संस्कृति हैं ! (सतो गुण )
** देविक प्रवृतियों को धारण करे तभी आप देवलोक पाने के अधिकारी बनेंगे **
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*अवश्यं यातारश्चिरतरमुषित्वापि विषया,*
*वियोगे को भे दस्त्यजति न जनो यत्स्वयममून्।*
*व्रजन्त: स्वातंत्र्यादतुलपरितापाय मनस:*
*स्वयं त्यक्ता ह्ये शमसुखमनन्तं विदधति ।।*
*भावार्थ -* सांसारिक विषय एक दिन हमारा साथ छोड़ देंगे, यह एकदम सत्य है। उन्होंने हमको छोड़ा या हमने उन्हें छोड़ा, इसमें क्या भेद है ? दोनों एक बराबर हैं। अतएव सज्जन पुरुष स्वयं उनको त्याग देते हैं। स्वयं छोड़ने में ही सच्चा सुख है, बड़ी शान्ति प्राप्त होती है।
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हमेशा ध्यान में रखिये ---
" आप एक शुद्ध चेतना है यानि स्व ऊर्जा से प्रकाशित आत्मा ! माया (अज्ञान ) ने आपकी आत्मा के शुद्ध स्वरुप को छीन रखा है ! अतः माया ( अज्ञान ) से पीछा छुडाइये और शुद्ध चेतना को प्राप्त कर परमानन्द का सुख भोगिए !
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सत्कर्म करते रहना ही सही अर्थों में,,, जीवन से प्रेम,, है !
मंगलकामना : प्रभु आपके जीवन से अन्धकार (अज्ञान )को मिटायें एवं प्रकाश (ज्ञान )से भर दें !
( मनुष्य पद की गरिमा को क्यों खोता है और उसके क्या परिणाम होते है ?
उत्तर -- मनुष्य पद की गरिमा को तामसिक प्रवृतियों ( वासना , लालच एवं अहंकार ) के आधीन होने के कारण खोता है ! पवित्र गीता के अनुसार ये प्रवृतिया नरक का द्वार है ! हमारे मत में ये प्रवृतिया हमारे जीवन में तामस के उदय का आरम्भ है और यही तामस मानवो के जीवन में अज्ञानता , जड़ता एवं मूढ़ता के उदय का कारण है जो हमें नरक लोक ले जाने में सक्षम है ! अतः भ्रष्टाचार से बचो यानि पद की गरिमा को मत खोओ ! कोई भी पद या सम्मान (गरिमा ) इस जन्म में (पूर्व में संचित ) पुण्य कर्मो की देन है !पुण्य कर्मो के ह्यास के साथ ही गरिमा भी समाप्त हो जाती है और मानव को फिर अनेक योनियों में भटकना पड़ता है )
धर्मशील व्यक्ति ,,,,,,,
जिमि सरिता सागर महँ जाहीं l
जद्यपि ताहि कामना नाहीं ll
तिमि सुख सम्पति बिनहिं बुलाये l
धर्मशील पहँ जाइ सुहाये ll
जैसे सरिता (नदी ) उबड-खाबड़, पथरीले स्थानों को पार करते हुए पूर्ण रूपेण निष्काम भाव से समुद्र में जा मिलती है, उसी प्रकार धर्म-रथ पर आसीन मनुष्य के पास उसके न चाहते हुए भी समस्त सुख-सम्पत्ति, रिद्धियाँ-सिद्धियाँ स्वत: आ जाती हैं, सत्य तो यह है कि वे उसकी दासिता ग्रहण करने के लिए लालायित रहती है !
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,,,,सच्चे संतो की वाणी से अमृत बरसता है , आवश्यकता है ,,,उसे आचरण में उतारने की ....
जिस प्रकार मैले दर्पण में सूर्य देव का प्रकाश नहीं पड़ता है उसी प्रकार मलिन अंतःकरण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता है अर्थात मलिन अंतःकरण में शैतान अथवा असुरों का राज होता है ! अतः ऐसा मनुष्य ईश्वर द्वारा प्रदत्त " दिव्यदृष्टि " या दूरदृष्टि का अधिकारी नहीं बन सकता एवं अनेको दिव्य सिद्धियों एवं निधियों को प्राप्त नहीं कर पाता या खो देता है !
किसी भी गौशाला में दान देकर गौवंश को बचाये और देवताओं का आशीर्वाद एवं कृपा प्राप्त करे ! साथ ही अपने प्रारब्ध ( भाग्य ) में पुण्य संचित करे ! यह एक ऐसा पुण्य है जिससे इहलोक में देवताओ से सुख समृद्धि मिलती है एवं परलोक में स्वर्ग ! == 🙏👏🌹🌲🌿🌹
" जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख !"
"सत्य वचन में प्रीति करले,सत्य वचन प्रभु वास।
सत्य के साथ प्रभु चलते हैं, सत्य चले प्रभु साथ।। "
"एक माटी का दिया सारी रात अंधियारे से लड़ता है,
तू तो प्रभु का दिया है फिर किस बात से डरता है..."
हे मानव तू उठ और सागर (प्रभु ) में विलीन होने के लिए पुरुषार्थ कर ,,,,,,,
शरीर परमात्मा का दिया हुआ उपहार है ! चाहो तो इससे " विभूतिया " (अच्छाइयां / पुण्य इत्यादि ) अर्जित करलो चाहे घोरतम " दुर्गति " ( बुराइया / पाप ) इत्यादि !
परोपकारी बनो एवं प्रभु का सानिध्य प्राप्त करो !
प्रभु हर जीव में चेतना रूप में विद्यमान है अतः प्राणियों से प्रेम करो !
शाकाहार अपनाओ , करुणा को चुनो !