सौभाग्य का उदय ,,,,,,,,,,,,
🙏भाग्य से ज्यादा और समय से पहले....न किसी को मिला है...और न मिलेगा🙏
एक सेठ जी थे...जिनके पास काफी दौलत थी और सेठ
जी ने उस धन से निर्धनों की सहायता की..
अनाथ आश्रम एवं धर्मशाला आदि बनवाये...
इस दानशीलता के कारण सेठ जी
की नगर में काफी ख्याति थी...
सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में
की थी...परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण
उसका पति जुआरी, शराबी, सट्टेबाज निकल गया...
जिससे सब धन समाप्त हो गया..
बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी
से कहती...कि आप दुनिया की मदद करते हो...
मगर अपनी बेटी परेशानी में
होते हुए उसकी मदद क्यों नहीं करते
हो...सेठ जी कहते कि भाग्यवान...
जब तक बेटी-दामाद का भाग्य उदय
नहीं होगा तब तक मैं उनकी कीतनी
भी मदद करूं तो भी कोई फायदा नहीं...
जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद
करने को तैयार हो जायेंगे...परन्तु मां तो मां होती है...
बेटी परेशानी में हो तो मां को कैसे चैन आयेगा...
इसी सोच-विचार में सेठानी रहती थी...
कि किस तरह बेटी की आर्थिक मदद करूं...
एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि...
तभी उनका दामाद घर आ गया..
सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया...
और बेटी की मदद करने का विचार उसके
मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में
अर्शफिया रख दी जाये...जिससे बेटी की मदद भी हो
जायेगी...और दामाद को पता भी नही चलेगा...
यह सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अर्शफिया
दबा कर रख दी...और दामाद को टीका लगा कर विदा करते समय पांच
किलों शुद्ध देशी घी के लड्डू जिनमे अर्शफिया थी...
वह दामाद को दिये...दामाद लड्डू लेकर घर से चला..
दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर जाये
क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच दिये जायें..
और दामाद ने वह लड्डुयों का पैकेट मिठाई वाले
को बेच दिया..और पैसे जेब में डालकर चला गया...
उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर
के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के
लड्डू लेता चलू ...और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगे ...
मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठजी को
वापिस बेच दिया...जो उनके दामाद को उसकी सास ने दिया थे...
सेठ जी लड्डू लेकर घर आये.. सेठानीने जब
लड्डूओ का वही पैकेट देखा..
तो सेठानी ने लड्डू फोडकर देखे अर्शफिया देख
कर अपना माथा पीट लिया...
सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर
जाने तक और लड्डुओं में अर्शफिया छिपाने की
बात सेठ जी से कह डाली...
सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंनें पहले ही
समझाया था...कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा...
देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी...
और न ही मिठाई वाले के भाग्य में...
विशेष ,,,,,,इसलिये कहते हैं कि भाग्य सेज्यादा...और...समय..
से पहले न किसी को कुछ मिला है और न मिलेगा —
माँ लक्ष्मी आपके जीवन को हर्षोल्लास से भर दे
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भवसागर से पार होने के लिये मनुष्य शरीर रूपी सुन्दर नौका मिल गई है। सतर्क रहो कहीं ऐसा न हो कि वासना की भँवर में पड़कर नौका डूब जाय।
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स्वयं कमाओ, स्वयं खाओ यह प्रकृति है । (रजो गुण)
दूसरा कमाए, तुम छीन कर खाओ यह विकृती है।(तमो गुण )
स्वयं कमाओ सबको खिलाओ, यह देविक संस्कृति हैं ! (सतो गुण )
** देविक प्रवृतियों को धारण (Perception ) करे तभी आप देवलोक पाने के अधिकारी बनेंगे **
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हमेशा ध्यान में रखिये ---
" आप एक शुद्ध चेतना है यानि स्व ऊर्जा से प्रकाशित आत्मा ! माया (अज्ञान ) ने आपकी आत्मा के शुद्ध स्वरुप को छीन रखा है ! अतः माया ( अज्ञान ) से पीछा छुडाइये और शुद्ध चेतना को प्राप्त कर परमानन्द का सुख भोगिए !
विशेष,,,, आपके अज्ञान को दूर कर अग्निहोत्र के इस ग्यान के प्रकाश को दे पाऊ /फेला पाऊ, यही मेरा स्वप्न है. यह आचरण मेरी निष्काम /निःस्वार्थ सोच का परिणाम है l प्रभु मेरी सहायता करे / मेरा मार्ग प्रशस्त करे.
मुख्य संचालक देवलोक अग्निहोत्र
जिस प्रकार एक छोटे से बीज़ में विशाल वट वृक्ष समाया होता है उसी प्रकार आप में अनंत क्षमताएं समायी हुईं हैं l आवश्यकता है उस ज्ञान की / अपना बौधिक एवं शैक्षणिक स्तर को उन्नत करने की जिसे प्राप्त कर आप महानता प्राप्त कर सके !
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आओ हम सब वृक्ष लगाऐं धरती का श्रृंगार करें।
मातृभूमि को प्रतिपल महकाऐं,जीवन से हम प्रेम करें।।
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Note ; कृपया पोस्ट के साथ ही #देवलोक_अग्निहोत्र का page भी लाइक करें और इहलोक में श्रेष्ठतम पुण्यो का संचय करने के लिए अति उत्तम ज्ञान प्राप्त करे ! देवलोक अग्निहोत्र सदैव आपको नेक एवं श्रेष्ठ कर्मों को करने के लिए प्रेरित करते रहेंगे ताकि अति उत्तम पुण्य कमाए और परलोक में इच्छानुसार लोक प्राप्त करे. जय माता गौ गंगा गायत्री.
प्रकृति का संरक्षण एवं संवर्धन ईश्वर की श्रेष्ठ आराधना है !एक पेड़ लगाना, सौ गायों का दान देने के समान है lपीपल का पेड़ लगाने से व्यक्ति को सेंकड़ों यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है l
छान्दोग्यउपनिषद् में उद्दालक ऋषि अपने पुत्र श्वेतकेतु से आत्मा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वृक्ष जीवात्मा से ओतप्रोत होते हैं और मनुष्यों की भाँति सुख-दु:ख की अनुभूति करते हैं। हिन्दू दर्शन में एक वृक्ष की मनुष्य के दस पुत्रों से तुलना की गई है-
'दशकूप समावापी: दशवापी समोहृद:।
दशहृद सम:पुत्रो दशपत्र समोद्रुम:।। '
इस्लामी शिक्षा में पेड़ लगाने और वातावरण को हराभरा रखने पर जोर दिया गया है। पेड़ लगाने को सदका अथवा पुण्य का काम कहा गया है। पेड़ को पानी देना किसी मोमिन को पानी पिलाने के समान बताया गया है।
देवलोक अग्निहोत्र आपको सद्गुरु की तरह सन्मार्ग दिखाने का हर सम्भव प्रयास करेगा !
कोई न सतगुरु सों परोपकारी जग माहिं।
मैलो मन-बुद्धि संवार, यम ते लेत छुड़ाहिं।।
जय गौ गंगा गायत्री त्रिमाता