संतजन,,,,,,,,,
साधु चरित सुभ चरित कपासू।निरस विशद गुनमय फल जासू।
जो सहि दुख परछिद्र दुरावा।वंदनीय जेहि जग जस पावा।
संत का चरित्र कपास की भांति उज्जवल है लेकिन उसका फल नीरस विस्तृत और गुणकारी होता है। संत स्वयं दुख सहकर अन्य के दोशों को ढकता है।इसी कारण संसार में उन्हें यश प्राप्त होता है।
मुद मंगलमय संत समाजू।जो जग जंगम तीरथ राजू।
राम भक्ति जहॅ सुरसरि धारा।सरसई ब्रह्म विचार प्रचारा।
संत समाज आनन्द और कल्याणप्रद है।वह चलता फिरता तीर्थराज है।वह
ईश्वर भक्ति का प्रचारक है।
सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।
जो ब्यक्ति प्रसन्नता से संतो के विशय में सुनते समझते हैं और उसपर मनन
करते हैं-वे इसी शरीर एवं जन्म में धर्म अर्थ काम मोक्ष चारों फल प्राप्त
करते हैं।
मज्जन फल पेखिअ ततकाला।काक होहिं पिक वकउ मराला।
सुनि आचरज करै जनि कोई।सत संगति महिमा नहि गोई।
संत रूपी तीर्थ में स्नान का फल तुरंत मिलता है।
कौआ कोयल और बगुला हंस बन जाते हैं।
संतों की संगति का महात्म्य अकथ्य है।
मति कीरति गति भूति भलाई।जब जेहि जतन जहाॅ जेहि पाई।
सो जानव सतसंग प्रभाउ।लोकहुॅ बेद न आन उपाउ।
जिसने भी जहाॅ बुद्धि यश सदगति सुख सम्पदा प्राप्त किया है-वह संतों की संगति का प्रभाव जानें। सम्पूर्ण बेद और लोक में इनकी प्राप्ति का यही उपाय बताया गया हैं।
बिनु सतसंग विवेक न होई।राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।
सत संगत मुद मंगल मूला।सोई फल सिधि सब साधन फूला ।
संत की संगति बिना विवेक नही होता।प्रभु कृपा के बिना संत की संगति सहज नही है। संत की संगति आनन्द और कल्याण का मूल है।इसका मिलना हीं फल है।अन्य सभी उपाय केवल फूलमात्र है।
सठ सुधरहिं सत संगति पाई।पारस परस कुघात सुहाई।
बिधि बश सुजन कुसंगत परहीं।फनि मनि सम निज गुन अनुसरहिं।
दुष्ट भी सतसंग से सुधर जाते हैं।पारस के छूने से लोहा भी स्वर्ण हो जाताहै।
यदि कभी सज्जन ब्यक्ति कुसंगति में पड़ जाते हैं तब भी वे साॅप के मणि के समान अपना प्रकाश नहीं त्यागते और विश नही ग्रहण करते हैं।
बिधि हरि हर कवि कोविद वाणी।कहत साधु महिमा सकुचानी।
सो मो सनि कहि जात न कैसे।साक बनिक मनि गुन गन जैसे।
ब्रह्मा विश्णु शिव कवि ज्ञानी भी संत की महिमा कहने में संकोच करते हैं।
साग सब्जी के ब्यापारी मणि के गुण को जिस तरह नही कह सकते-उसी
तरह हम भी इनका वर्णन नही कर सकते।
बंदउ संत समान चित हित अनहित नहि कोई
अंजलि गत सुभ सुमन जिमि सम सुगंध कर दोइ।
संत का चरित्र समतामूलक होता है।वह सबका हित ओर किसी का भी अहितनही देखता हैं। हाथों में रखा फूल जिस प्रकार सबों को सुगंधित करता है-उसीतरह संत भी शत्रु ओर मित्र दोनों की भलाई करते हैं।
संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु।
बाल बिनय सुनि करि कृपा राम चरण रति देहु।
संत सरल हृदय का और सम्पूर्ण संसार का कल्याण चाहते हैं।
अतः मेरी प्रार्थना है कि मेरे बाल हृदय में राम के चरणों में मुझे प्रेम दें।
उपजहिं एक संग जग माही।जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं
सुधा सुरा सम साधु असाधूं।जनक एक जग जलधि अगाधू।
कमल और जोंक दोनों साथ हीं जल में पैदा होते हैं पर उनके गुण अलग हैं।
अमृत और मदिरा दोनों समुद्र मंथन से एक साथ प्राप्त हुआ। इसी तरह साधू और दुष्ट दोनों जगत में साथ पैदा होते हैं परन्तु उनके स्वभाव अलग होते हैं।
खल अघ अगुन साधु गुन गाहा।उभय अपार उदधि अवगाहा।
तेहि तें कछु गुन देाश बखाने। संग्रह त्याग न बिनु पहिचाने।
शैतान के अवगुण एवं साधु के गुण दोनों हीं अपरम्पार और अथाह समुद्र हैं। विना पहचान एवं ज्ञान के उनका त्याग या ग्रहण नही किया जा सकता है।
जड चेतन गुण दोशमय विस्व किन्ह अवतार
संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि वारि विकार।
भगवान ने हीं जड चेतन संसार को गुण दोशमय बनाया है लेकिन संत रूप
में हंस दूशित जल छोड कर दूध हीं स्वीकार करता है।
लखि सुवेश जग वंचक जेउ।वेश प्रताप पूजिअहिं तेउ।
उघरहिं अंत न होई निवाहू।कालनेमि जिमि रावन राहूं।
कभी कभी ठग भी साधु का भेश बनाकर लोग उन्हें पूजने लगते हैं पर एक
दिन उनका छल प्रकट हो जाता है जैसे कालनेमि रावण और राहु का हाल हुआ।
कियहुॅ कुवेशु साधु सनमानु।जिमि जग जामवंत हनुमानू।
हानि कुसंग सुसंगति लाहू।लोकहुॅ वेद विदित सब काहू।
बुरा भेश बनाने पर भी साधु का सम्मान हीं होता है।संसार में जामवंत और
हनुमान जी का अत्यधिक सम्मान हुआ। बुरी संगति से हानि और अच्छी संगति से लाभ होता है इसे पूरा संसार जानता है।
गगन चढई रज पवन प्रसंगा।कीचहिं मिलई नीच जल संगा।
साधु असाधु सदन सुक सारी।सुमिरहिं राम देहिं गनि गारीं।
हवा के साथ धूल आकाश पर चढता है।नीचे जल के साथ कीचड में मिल जाता है। साधु के घर सुग्गा राम राम बोलता है और नीच के घर गिन गिन कर गालियाॅ देता है।संगति से हीं गुण होता है !
धूम कुसंगति कारिख होई।लिखिअ पुरान मंजु मसि सोई।
सोई जल अनल अनिल संघाता।होई जलद जग जीवन दाता।
बुरे संगति में धुआ कालिख हो जाता है।अच्छे संगति में धुआ स्याही बन बेद पुराण लिखने में काम देता है। वही धुआ पानी आग और हवा के संग बादल बनकर संसार को जीवन देने बाला बर्शा बन जाता है।
अग्य अकोविद अंध अभागी।काई विशय मुकुर मन लागी।
लंपट कपटी कुटिल विसेशी।सपनेहुॅ संत सभा नहिं देखी।
अज्ञानी मूर्ख अंधा और अभागा लोगों के मन पर विषय रूपी काई जमी रहती है।लंपट ब्यभिचारी ठग और कुटिल लोगों को स्वप्न में भी संत समाज का दर्शन नहीं हो पाता है !
सट विकार जित अनघ अकामा। अचल अकिंचन सुचि सुखधामा
अमित बोध अनीह मितभोगी।सत्यसार कवि कोविद जोगी।
संत काम क्रोध लोभ मोह अहंकार और मत्सर छः विकारो पर बिजय पाकर पापरहित इच्छारहित निश्चल सर्वस्व त्यागी पूर्णतः पवित्र सुखी ज्ञानी मिताहारीकामनारहित सत्यवादी कवि विद्वान और योगी हो जाते हैं।
विशेष ,,,,,,,,,
संत जप तपस्या ब्रत दम संयम और नियम में लीन रहते हैं। गुरू, भगवान और ब्राह्मण ( ब्राह्मण यानि धर्म का अनुसरण करने वाले और ब्रह्म को धारण किये हुए संत लोग ) के चरणों में प्रेम रखते हैं। उनमें श्रद्धा क्षमाशीलता मित्रता दया प्रसन्नता और ईश्वर के चरणों में विना छल कपट के प्रेम रहता है।
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हमेशा ध्यान में रखिये ---
" आप एक शुद्ध चेतना है यानि स्व ऊर्जा से प्रकाशित आत्मा ! माया (अज्ञान ) ने आपकी आत्मा के शुद्ध स्वरुप को छीन रखा है ! अतः माया ( अज्ञान ) से पीछा छुडाइये और शुद्ध चेतना को प्राप्त कर परमानन्द का सुख भोगिए !
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धर्मशील व्यक्ति ,,,,,,,
जिमि सरिता सागर महँ जाहीं l
जद्यपि ताहि कामना नाहीं ll
तिमि सुख सम्पति बिनहिं बुलाये l
धर्मशील पहँ जाइ सुहाये ll
जैसे सरिता (नदी ) उबड-खाबड़, पथरीले स्थानों को पार करते हुए पूर्ण रूपेण निष्काम भाव से समुद्र में जा मिलती है, उसी प्रकार धर्म-रथ पर आसीन मनुष्य के पास उसके न चाहते हुए भी समस्त सुख-सम्पत्ति, रिद्धियाँ-सिद्धियाँ स्वत: आ जाती हैं, सत्य तो यह है कि वे उसकी दासिता ग्रहण करने के लिए लालायित रहती है !
🌹मानवीय गुणों में एक प्रमुख गुण है "क्षमा" और क्षमा जिस भी मनुष्य के अन्दर है वो किसी वीर से कम नही है। तभी तो कहा गया है कि- " क्षमा वीरस्य भूषणं और क्षमा वाणीस्य भूषणं " क्षमा साहसी लोगों का आभूषण है और क्षमा वाणी का भी आभूषण है। यद्यपि किसी को दंडित करना या डाँटना आपके वाहुबल को दर्शाता है।
🌹मगर शास्त्र का वचन है कि बलवान वो नहीं जो किसी को दण्ड देने की सामर्थ्य रखता हो अपितु बलवान वो है जो किसी को क्षमा करने की सामर्थ्य रखता हो। अगर आप किसी को क्षमा करने का साहस रखते हैं तो सच मानिये कि आप एक शक्तिशाली सम्पदा के धनी हैं और इसी कारण आप सबके प्रिय बनते हो।
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,,,,सच्चे संतो की वाणी से अमृत बरसता है , आवश्यकता है ,,,उसे आचरण में उतारने की ....
जय गौमाता की 🙏👏🌹🌲🌿🌹
" जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख !"
"एक माटी का दिया सारी रात अंधियारे से लड़ता है,
तू तो प्रभु का दिया है फिर किस बात से डरता है..."
हे मानव तू उठ और सागर (प्रभु ) में विलीन होने के लिए पुरुषार्थ कर ,,,,,,
जिसका मन लग गया भगवान मे उसका दीया भी जलेगा तुफान में
तन का दीपक मन की बाती जगमग ज्योत जले दिन राती।
कैसा खेल रचाया भगवान ने 🙏हरि ॐ नमो नारायणा 🙏
तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला। ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला॥
प्रभु,आप जिस पर अनुकूल होते हैं, उसे तीनों प्रकार के भवशूल (आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक ताप) नहीं व्यापते...॥जय श्री राम॥
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"सत्य वचन में प्रीति करले,सत्य वचन प्रभु वास।
सत्य के साथ प्रभु चलते हैं, सत्य चले प्रभु साथ।। "
शरीर परमात्मा का दिया हुआ उपहार है ! चाहो तो इससे " विभूतिया " (अच्छाइयां / पुण्य इत्यादि ) अर्जित करलो चाहे घोरतम " दुर्गति " ( बुराइया / पाप ) इत्यादि !
परोपकारी बनो एवं प्रभु का सानिध्य प्राप्त करो !
प्रभु हर जीव में चेतना रूप में विद्यमान है अतः प्राणियों से प्रेम करो !
शाकाहार अपनाओ , करुणा को चुनो !
जय गौमाता की 🙏👏🌹🌲🌿