सायुज्य मुक्ति.......
भक्त तुलसीदास जी अध्यात्म रामायण और आनंद रामायण में वर्णित प्रसंग को संक्षेप में रामचरितमानस में लिखते हैं -
जे रामेस्वर दरसनु करिहहिं।
ते तनु तजि मम लोक सिधरहहिं।।
जो गंगाजलु आनि चढ़ाइहि।
सो साजुज्य मुक्ति नर पाइहि।।
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए श्री रामेश्वर (ज्योतिर्लिंग) का दर्शन करेंगे , वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएंगे। जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा , वह मनुष्य "सायुज्य मुक्ति" पाएगा।
एक उपनिषद है , जिसमें 108 उपनिषदों के नाम दिए गए हैं , उस उपनिषद का नाम है - मुक्तिकोपनिषद।
मुक्तिकोपनिषद में " श्रीराम - हनुमान संवाद " के अंतर्गत श्रीराम चार प्रकार की मुक्ति का उल्लेख करते हैं - सालोक्य , सारूप्य , सामीप्य एवं सायुज्य मुक्ति।
भक्त तुलसीदास ' मम लोक ' के माध्यम से सालोक्य मुक्ति एवं ' साजुज्य ' के माध्यम से सायुज्य मुक्ति का उल्लेख करते हैं।
आइए ! चारों मुक्ति के बारे में जानते हैं।
सालोक्य मुक्ति - प्रभु के परम लोक (परम धाम) में जाकर निवास करने को सालोक्य मुक्ति कहते हैं। प्रभु के लोक में कुछ भी बन कर रहना सालोक्य मुक्ति है।
सारूप्य मुक्ति - भगवान के परमधाम में जाकर भगवान के जैसे स्वरूपवाले होकर निवास करने को सारूप्य मुक्ति कहते हैं।
सालोक्य मुक्ति के अंतर्गत प्रभु के धाम में पहुंच कर वहां किसी रूप में रहना मात्र होता है , जबकि सारूप्य मुक्ति के अंतर्गत प्रभु के लोक में पहुंचकर प्रभु के समान रूप पाकर रहना होता है।
सामीप्य मुक्ति - भगवान के परमधाम में जाकर उनके समीप निवास करने को सामीप्य मुक्ति कहते हैं।
सामीप्य मुक्ति सारूप्य मुक्ति से श्रेष्ठ है। सारूप्य मुक्ति के अंतर्गत स्वरूप तो प्रभु का हो जाता है , लेकिन वह प्रभु के निकट नहीं रहता। सामीप्य मुक्ति के अंतर्गत वह प्रभु का स्वरूप पाकर प्रभु के निकट रहता है।
सायुज्य मुक्ति - भगवान के स्वरूप में अभेदरूप से विलीन हो जाने को सायुज्य मुक्ति कहते हैं। इसके अंतर्गत भक्त भगवान में लीन होकर आनंद की अनुभूति करता है। अब उसका अपना कोई अलग अस्तित्व नहीं होता। वह प्रभु के साथ एकाकार हो जाता है।
उपर्युक्त चारों प्रकार की मुक्ति में यह सर्वश्रेष्ठ मुक्ति है।
भक्त तुलसीदास जी सायुज्य मुक्ति के माध्यम से अभेद उपासना की ओर संकेत करते हैं। प्रभु श्री राम तथा प्रभु महादेव शंकर जी में कोई भेद नहीं है , दोनों एक ही हैं। जिनके अंतःकरण में दोनों के प्रति सम दृष्टि एवं सम श्रद्धा होती है , वैसे भक्त सायुज्य मुक्ति को प्राप्त करते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि अपने भक्तों के सामने प्रभु श्री राम स्वयं अपना उदाहरण प्रस्तुत करते हैं और स्वयं शिव ज्योतिर्लिंग की स्थापना कर उसकी आराधना करते हैं।
।। भगवान शंकर की जय ।।
।। भगवान श्रीराम की जय ।।
।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।