चार प्रकार के श्रीराम भक्त
भक्त तुलसीदास जी का अध्ययन काफी गंभीर एवं व्यापक था। अपने ग्रंथ रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने भगवद्गीता के भक्तिमूलक श्लोकों को समाहित किया है तथा उसे चौपाई के माध्यम से बड़े ही सरल ढंग से प्रकट किया है।
इसका एक उदाहरण नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है -
राम भगत जग चारि प्रकारा।
सुकृती चारिउ अनघ उदारा।।
जगत में चार प्रकार के रामभक्त होते हैं और चारों ही पुण्यात्मा , पापरहित और उदार होते हैं।
यह प्रसंग भगवद्गीता के सप्तम अध्याय से लिया गया है , जिसमें भगवान श्री कृष्ण कहते हैं -
" चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन। "
अर्थ - हे अर्जुन ! चार प्रकार के सुकृती भक्तजन मुझे भजते हैं।
" उदारा: सर्व एवैते " अर्थात् ये सभी उदार हैं।
चूंकि भक्त तुलसीदासजी रामभक्ति शाखा के भक्त-कवि हैं तथा उनके इष्ट प्रभु श्री राम हैं , अतः उन्होंने भक्त के पहले राम शब्द का प्रयोग किया है।
भगवान को विश्वासपूर्वक भजने वाले सभी भक्त सुकृती होते हैं , फिर चाहे किसी भी हेतु से भजे। ये पुण्यवान होते हैं , जो किसी भी कारण से परमात्मा की ओर उन्मुख होते हैं।
सुकृतियों में एक श्रेणी आर्त्त की होती है।
तुलसीदास जी लिखते हैं -
जपहिं नामु जन आरत भारी।
मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
अर्थात् संकट से घबराए हुए आर्त्त भक्त प्रभु का नाम जप करते है , तो उनके बड़े भारी संकट भी मिट जाते हैं और वे सुखी हो जाते हैं।
एक आर्त्त व्यक्ति पहले अपने संकट-निवारण के लिए स्वयं भरपूर कोशिश करता है, लेकिन वह सफल नहीं हो पाता है। फिर वह अन्य लोगों की सहायता लेता है , तो भी सफल नहीं हो पाता है। तब वह अंततः भगवान की शरण लेता है। जिस प्रकार रोग मुक्त होने के लिए रोगी चिकित्सक की शरण में जाता है , ठीक उसी प्रकार अपने दुःख एवं कष्ट से मुक्त होने के लिए आर्त्त भक्त भगवान की शरण में जाता है।
सकाम भाव रहने पर भी आर्त्त भक्त उसकी पूर्ति अंत में केवल भगवान से ही चाहता है।
भागवत महापुराण में गजेंद्र का दृष्टांत आर्त्त भक्त के रूप वर्णित है।
एक बार सरोवर में एक बलवान ग्राह (मगर) ने गजेंद्र के पैर को पकड़ लिया। गजेंद्र ने विपत्ति में पड़कर अपनी शक्ति के अनुसार अपने को छुड़ाने की कोशिश की , पर छुड़ा न सका। अन्य हाथियों ने भी प्रयास किया , तो भी गजेंद्र अपने पैर को छुड़ा न पाया , तब उसने अंत में भगवान की शरण ली।
भगवान आर्त्त भक्त गजेंद्र को देखकर गरुड़ को छोड़कर कूद पड़े और कृपा करके गजेंद्र के साथ ही ग्राह को भी बड़ी शीघ्रता से सरोवर से बाहर निकाल लाए और फिर भगवान श्री हरि ने चक्र से ग्राह का मुंह फाड़ डाला और गजेंद्र को छुड़ा लिया।
इसके बाद गजेंद्र को मोक्ष लाभ होता है और उसका गज शरीर गिर जाता है। वह ईश्वर के पार्षद के रूप में मुक्त हो जाता है।
किसी भी कारण से प्रभु की शरण में जाना और भगवान का भजन करना सुकृती का लक्षण होता है।
मिथिलेश ओझा की ओर से आपको नमन एवं वंदन।
।। भक्त एवं भगवान की जय ।।