अधिक मास" वा "पुरुषोत्तम मास" हिन्दू पंचांग में एक अत्यंत महत्वपूर्ण मासिक अवधि है जो विशेष पूजा, व्रत और धार्मिक क्रियाएँ करने के लिए आवश्यक मानी जाती है। यह मास हिन्दू कैलेंडर में किसी भी साल में अधिक मास के रूप में एक बार आता है, जिसका आयोजन लुनर कैलेंडर के आधार पर होता है।
अधिक मास की कथा कुछ इस प्रकार है:
एक बार की बात है, ऋषि मुनियों ने ऋषि मनु से पूछा कि लोग व्रत और पूजा करने के बावजूद भी सुख और शांति नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं। मनु ऋषियों से इसका कारण पूछते हैं तो ऋषि बताते हैं कि कोई व्यक्ति अवश्य धार्मिक कर्म कर रहा होता है, लेकिन उसकी भक्ति और आत्मा में समर्पण नहीं होता।
मनु ऋषियों की यह बात समझकर उनसे यह प्रश्न पूछते हैं कि ऐसा कौनसा महीना है जिसमें धार्मिक कर्मों का विशेष महत्व होता है, जो भक्ति और आत्मा में समर्पण को प्राप्त करवा सके। ऋषि मुनियों ने उन्हें अधिक मास के बारे में बताया।
अधिक मास के आयोजन में विशेष धार्मिक क्रियाएँ और पूजाएँ की जाती हैं, जो विशेष तरीके से कियी जाती हैं। यह मास भक्ति, पूजा, ध्यान और दान की विशेष महत्वपूर्ण धार्मिक क्रियाएँ करने का अवसर प्रदान करता है।
हिन्दू धर्म में कैलेंडर की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कैलेंडर के महीनों और तिथियों के आधार पर ही धार्मिक उत्सव, पर्व, व्रत आदि का आयोजन होता है। विशेष रूप से, "अधिक मास" या "पुरुषोत्तम मास" का महत्व हिन्दू धर्म में विशेष रूप से होता है। यह मास केवल विशेष अवस्थाओं में ही आता है और उसका महत्वपूर्ण धार्मिक सन्दर्भ होता है। इसकी कहानी भी विशेष होती है, जो हम यहाँ पर विस्तार से जानेंगे।
अधिक मास की उपयुक्तता: हिन्दू पंचांग में वर्ष को 12 महीनों में बाँटा जाता है, लेकिन सौरमासी पंचांग में सन्दर्भित 12 महीने का कैलेंडर चांद्रमासी होता है जो लगभग 29.5 दिन के आधार पर होता है। यह कैलेंडर सूर्य और चंद्रमा की गतियों के संगति पर आधारित होता है। इसके कारण, चंद्रमासी कैलेंडर में हर साल लगभग 10-11 दिन की अधिशेष रहती है। इस अधिशेष को पूरा करने के लिए "अधिक मास" या "पुरुषोत्तम मास" का आयोजन होता है।
अधिक मास की कहानी: कहानी की शुरुआत ऋषि मुनियों की एक गुफा में होती है, जहाँ वे ध्यान और तपस्या में लगे हुए हैं। वे अपने आचार्य से यह पूछते हैं कि लोग धार्मिक कर्मों का पालन कर रहे होते हैं, फिर भी उन्हें शांति और सुख क्यों नहीं मिलता। आचार्य ने उन्हें यह बताया कि कोई व्यक्ति धार्मिक कार्यों को तो कर रहा होता है, लेकिन उसका भक्ति और आत्मा में समर्पण नहीं होता। इसका उत्तर देने के लिए ऋषि मुनियों का यह प्रश्न था कि क्या कोई ऐसा समय भी हो सकता है जब धर्म, भक्ति और आत्मा में समर्पण का विशेष महत्व होता हो?
आचार्य ने उन्हें अधिक मास के बारे में बताया। अधिक मास वह विशेष मास होता है जो चंद्रमासी कैलेंडर के अनुसार आता है और जिसमें धार्मिक कर्मों का विशेष महत्व होता है। इस मास में भक्ति, पूजा, ध्यान और दान की विशेष महत्वपूर्ण धार्मिक क्रियाएँ की जाती हैं। ऋषि मुनियों ने इसकी अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए अपने आचार्य से पूछते हैं।
आचार्य ने कहानी का विस्तार किया और बताया कि बहुत समय पहले, देवता और देवीयों ने दिव्य यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में वे सभी धार्मिक क्रियाएँ करने का संकल्प लिया था और उन्होंने उनके द्वारा जुटाए गए सम्पत्ति का दान किया।
लेकिन दान के पश्चात्, वे बहुत ही चिंतित हो गए क्योंकि उनके आचरण में कुछ गलतियाँ हो गई थीं। इसके परिणामस्वरूप, उन्होंने धरती पर आपसी विरोधों और दुखों का सामना किया। देवता और देवीयों का मानसिक स्थिति भी बहुत खराब हो गया था।
देवता और देवीयों का दुखद अवस्था देखकर भगवान विष्णु ने इस समस्या का समाधान निकालने का निश्चय किया। उन्होंने सभी देवता और देवीयों को अधिक मास के महत्व के बारे में बताया और उन्हें इसे समय-समय पर मनाने की सलाह दी। भगवान विष्णु ने यह भी बताया कि अधिक मास में धार्मिक कार्यों का पालन करने से देवता और देवीयों का मानसिक स्थिति सुधर सकता है और उन्हें शांति, सुख और आनंद प्राप्त हो सकता है।
देवता और देवीयों ने इस सम्भावना को स्वीकार किया और वे अधिक मास के महत्व के बारे में अध्ययन करने लगे। उन्होंने अधिक मास में करने वाले धार्मिक कार्यों के बारे में जानकारी प्राप्त की और इसे समय-समय पर मनाने का निश्चय किया।
वायुपुराण में एक कथा में यह भी बताया गया है कि अधिक मास का आयोजन ब्रह्मा द्वारा किया गया था। ब्रह्मा ने अधिक मास को श्रीकृष्ण पक्ष के शुक्ल पक्ष की द्वादशी से शुरू करके पूर्णिमा तिथि तक का समय माना था।
अधिक मास का महत्व:
अधिक मास का महत्वपूर्ण अर्थ है धार्मिक कर्मों का पालन करने का अवसर प्राप्त करना। इस मास में धार्मिक तप, पूजा, ध्यान और दान का विशेष महत्व होता है। अधिक मास में विशेष रूप से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और श्री गणेश चतुर्थी जैसे पर्वों का आयोजन किया जाता है। यह मास धर्म, भक्ति और आत्मा में समर्पण की भावना को प्रोत्साहित करने का एक अवसर प्रदान करता है।
इसके साथ ही यह कथा बताती है कि कई बार हम धार्मिक कार्यों का पालन तो करते हैं, लेकिन उनमें भक्ति और आत्मा में समर्पण नहीं होता। यह बात हमें यह याद दिलाती है कि केवल कार्यों का मात्र आचरण करना उपयुक्त नहीं है, बल्कि हमें उन कार्यों को भक्ति और समर्पण के साथ करना चाहिए।
अधिक मास की यह कथा हमें यह सिखाती है कि धार्मिकता और आध्यात्मिकता ने एक व्यक्ति के जीवन को कैसे परिवर्तित किया जा सकता है। अधिक मास का आयोजन न केवल पूजा-पाठ और कर्मों का आचरण के लिए होता है, बल्कि यह हमें अपने आत्मा के साथ एक मिलनसर संबंध बनाने का अवसर भी प्रदान करता है।
इस कथा से हमें यह भी सिखने को मिलता है कि समय-समय पर हमें अपने आत्मा की ओर एक साक्षात्कार करने का समय मिलता है। धार्मिक कार्यों के माध्यम से हम अपने आत्मा को जानने का अवसर प्राप्त करते हैं और अपने जीवन को एक नये दिशा में देखने का माध्यम प्राप्त करते हैं।
अधिक मास की कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि आचार्यों और ऋषियों के मार्गदर्शन में हम अपने जीवन को सफलता और पूर्णता की ओर ले जा सकते हैं। धार्मिकता और आध्यात्मिकता हमें न केवल अच्छे कार्यों का पालन करने की सिखाती है, बल्कि यह हमें एक आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देती है।
"अधिक मास की कहानी" हमें यह बताती है कि धार्मिक कार्यों का सिर्फ आचरण करना अपने आप में काफी नहीं है, बल्कि हमें उन कार्यों को भक्ति, आत्मा में समर्पण और सही मार्गदर्शन के साथ करना चाहिए। यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि समय-समय पर धार्मिक कार्यों को आचरण करने से हम अपने आत्मा के साथ एक मिलनसर संबंध को भी प्राप्त कर सकते हैं।