राम चरितमानस- किन लोगों से कौन-कौन सी बातें नहीं करनी चाहिए ?
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति | सहज कृपन सन सुंदर नीति ||१||
ममता रत सन ज्ञान कहानी | अति लोभी सन बिरती बखानी ||
क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा | उसर बिज बए फल जथा ||२||
भावार्थ - मुर्ख से विनय, कुटिल के साथ प्रीति, स्वाभाविक ही कंजूस से सुंदर नीति (उदारता का उपदेश), ममता में फसे हुए मनुष्य से ज्ञान की कथा, अत्यंत लोभी से वैराग्य का वर्णन, क्रोधी से शम (शांति) की बात और कामी से भगवान की कथा, इनका वैसा ही फल होता है जैसा उसर में बीज बोने से होता है (अर्थात उसर में बीज बोने की भाति यह सब व्यर्थ जाता है)
Meaning - Supplication before an idiot, friendship with a rogue, inculcating liberality on a born miser, talking wisdom to one steeped in worldliness, glorifying dispassion before a man of excessive greed, a lecture on mindcontrol to an irascible man and a discourse on the exploits of Sri Hari to a libidinous person are as futile as sowing seeds in a barren land.
काटेही पई कदरी फरइ कोटि जतन कोऊ सींच |
बिनय न मान खगेस सुनु डाटेही पई नव नीच ||
भावार्थ - चाहे कोई करोडो उपाय करके सींचे, पर केला तो काटने पर ही फलता है | नीच विनय से नहीं मानता, वह डाटने पर ही झुकता है (रास्ते पर आता है)
Meaning - Though one may take infinite pains in watering a plantain it will not bear fruit unless it is hewed, Similarly, mark me, O king of birds (continues Kakabhusundi) , a vile fellow heeds no prayer but yields only when reprimanded.
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श्रीराम वानर सेना सहित समुद्र किनारे तीन दिनों तक रुके हुए थे। श्रीराम ने समुद्र से प्रार्थना की थी कि वह वानर सेना को लंका तक पहुंचने के लिए मार्ग दें, लेकिन समुद्र ने श्रीराम के आग्रह को नहीं माना और इस प्रकार तीन दिन व्यतीत हो गए। तीन दिनों के बाद श्रीराम समुद्र पर क्रोधित हो गए और उन्होंने लक्ष्मण से कहा कि-
* बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥
भावार्थ:-इधर तीन दिन बीत गए, किंतु जड़ समुद्र विनय नहीं मानता। तब श्री रामजी क्रोध सहित बोले- बिना भय के प्रीति नहीं होती!॥
इस दोहे का अर्थ यह है कि श्रीराम क्रोधित होकर लक्ष्मण से कहते हैं भय बिना प्रीति नहीं होती है यानी बिना डर दिखाए कोई भी हमारा काम नहीं करता है।
लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानू।।
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीती। सहज कृपन सन सुंदर नीती।
श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं- हे लक्ष्मण। धनुष-बाण लेकर आओ, मैं अग्नि बाण से समुद्र को सूखा डालता हूं। किसी मूर्ख से विनय की बात नहीं करना चाहिए। कोई भी मूर्ख व्यक्ति दूसरों के आग्रह या प्रार्थना को समझता नहीं है, क्योंकि वह जड़ बुद्धि होता है। मूर्ख लोगों को डराकर ही उनसे काम करवाया जा सकता है।
कुटिल के साथ न करें प्रेम से बात,,,,श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं कि जो व्यक्ति कुटिल स्वभाव वाला होता है, उससे प्रेम पूर्वक बात नहीं करना चाहिए। कुटिल व्यक्ति प्रेम के लायक नहीं होते हैं। ऐसे लोग सदैव दूसरों को कष्ट देने का ही प्रयास करते हैं। ये लोग स्वभाव से बेईमान होते हैं, भरोसेमंद नहीं होते हैं। अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को संकट में डाल सकते हैं। अत: कुटिल व्यक्ति से प्रेम पूर्वक बात नहीं करना चाहिए।
कंजूस से न करें दान की बात,,,जो लोग स्वभाव से ही कंजूस हैं, धन के लोभी हैं, उनसे उदारता की, किसी की मदद करने की, दान करने की बात नहीं करना चाहिए। कंजूस व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में धन का दान नहीं कर सकता है। कंजूस से ऐसी बात करने पर हमारा ही समय व्यर्थ होगा।
श्रीराम कहते हैं-
ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी।।
क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा।।
ममता में फंसे हुए व्यक्ति से न करें ज्ञान की बात
श्रीराम कहते हैं- ममता रत सन ग्यान कहानी। यानी जो लोग ममता में फंसे हुए हैं, उनसे ज्ञान की बात नहीं करना चाहिए। ममता के कारण व्यक्ति सही-गलत में भेद नहीं समझ पाता है।
अति लोभी से वैराग्य की बात,अति लोभी सन बिरति बखानी। यानी जो लोग बहुत अधिक लोभी हैं, उनका पूरा मोह धन में ही लगा रहता है। ऐसे लोग कभी भी वैरागी नहीं हो सकते हैं। सदैव धन के लोभ में फंसे रहते हैं। इनकी सोच धन से आगे बढ़ ही नहीं पाती है। अत: ऐसे लोगों से वैराग्य यानी धन का मोह छोड़ने की बात नहीं करना चाहिए।
क्रोधी से शांति का बात,,,जो व्यक्ति क्रोध में है, उससे शांति की बात करना व्यर्थ है। क्रोध के आवेश में व्यक्ति सब कुछ भूल जाता है। ऐसे समय में वह तुरंत शांत नहीं हो सकता है। जब तक क्रोध रहता है, व्यक्ति शांति से बात नहीं कर पाता है। क्रोध के आवेश में व्यक्ति अच्छी-बुरी बातों में भेद नहीं कर पाता है।
कामी से भगवान की बात,,,जो व्यक्ति कामी है यानी जिसकी भावनाएं वासना से भरी हुई है, उससे भगवान की बात करना व्यर्थ है। कामी व्यक्ति को हर जगह सिर्फ काम वासना ही दिखाई देती है। अति कामी व्यक्ति रिश्तों की और उम्र की मर्यादा को भी भूला देते हैं। अत: ऐसे लोगों से भगवान की बात नहीं करना चाहिए।
ऊसर बीज बएँ फल जथा।,,,इस पंक्ति में श्रीराम कहते हैं कि यहां बताए गए सभी व्यक्तियों से न करने योग्य बातें करेंगे तो कोई फल प्राप्त नहीं होगा। जिस प्रकार ऊसर यानी बंजर जमीन में बीज बोने पर बीज नष्ट हो जाते हैं, ठीक उसी प्रकार यहां बताए गए लोगों से सही बात करना व्यर्थ ही है।
अत: हमारे आसपास रहने वाले ऐसे लोगों से यहां बताई बातें करने से बचना चाहिए। यदि श्रीराम द्वारा बताई गई बातों का ध्यान नहीं रखा जाएगा तो हमारा ही समय व्यर्थ होगा और मानसिक तनाव का सामना करना पड़ेगा।
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धर्मशील व्यक्ति ,,,,,,,
जिमि सरिता सागर महँ जाहीं l
जद्यपि ताहि कामना नाहीं ll
तिमि सुख सम्पति बिनहिं बुलाये l
धर्मशील पहँ जाइ सुहाये ll
जैसे सरिता (नदी ) उबड-खाबड़, पथरीले स्थानों को पार करते हुए पूर्ण रूपेण निष्काम भाव से समुद्र में जा मिलती है, उसी प्रकार धर्म-रथ पर आसीन मनुष्य के पास उसके न चाहते हुए भी समस्त सुख-सम्पत्ति, रिद्धियाँ-सिद्धियाँ स्वत: आ जाती हैं, सत्य तो यह है कि वे उसकी दासिता ग्रहण करने के लिए लालायित रहती है ल
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भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्॥2॥
श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप माता पार्वती जी और श्री शंकर जी की मैं वंदना करता हूँ,
""**जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख पाते॥2॥""**
वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥3॥
अर्थात = ज्ञानमय, नित्य, शंकर रूपी गुरु की मैं वन्दना करता हूँ, जिनके आश्रित होने से ही टेढ़ा चन्द्रमा भी सर्वत्र वन्दित होता है॥3॥
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माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभिः । प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट ।।
अर्थात् गाय रुद्रो की माता ,वसुओ की पुत्री , अदिति पुत्रो की बहन और घृतरूप अमृत का खजाना है अतः प्रत्येक विचारशील पुरुष को मैंने यही समझाकर कहा है कि निरपराध एवं अवध्य गौ का वध न करो ।
यत्र गावः प्रसन्नाः स्युः प्रसन्नास्तत्र सम्पदः। यत्र गावो विषण्णाः स्युर्विषण्णास्तत्र सम्पदः।।
अर्थात जहाँ गाय प्रसन्न रहती है ,वहां सभी संपत्तियां प्रसन्न रहती है । जहाँ गाय दुःख पाती है , वहां सारी सम्पदाये दुखी हो जाती है ।।
गौ माता के विषय में श्रीमदभागवतमहापुराण में कहा गया है - वेदादिर्वेदमाता च पौरुषं सुक्तमेव च । त्रयी भागवतं चौव द्वादशाक्षर एव च ।। अर्थात गाय में ,वेद में ,ॐकार में ,द्वादशाक्षर मन्त्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) में ,सूर्य में ,गायत्री में ,वेदत्रयी में ,अंतर नहीं है ये सब साक्षात् भगवत्स्वरूप ही है भागवत का श्रवण करना ,भगवान् का चिंतन करना , तुलसी की पूजा करना ,जल सींचना और गाय की सेवा करना , कहते है कि इनमे कोई अंतर नहीं है
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" जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख !"
"एक माटी का दिया सारी रात अंधियारे से लड़ता है,
तू तो प्रभु का दिया है फिर किस बात से डरता है..."
हे मानव तू उठ और सागर (प्रभु ) में विलीन होने के लिए पुरुषार्थ कर
*आत्मा भी अंदर है* *परमात्मा भी अंदर है*
*आत्मा के परमात्मा**से मिलने का रास्ता*
*भी अंदर ही है ..*
_*"खुद"को "खुद" के अंदर ही बोध करो...*_
_*अपने कर्माें पर भी कभी तो शोध करो...*_
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शरीर परमात्मा का दिया हुआ उपहार है ! चाहो तो इससे " विभूतिया " (अच्छाइयां / पुण्य इत्यादि ) अर्जित करलो चाहे घोरतम " दुर्गति " ( बुराइया / पाप ) इत्यादि !
परोपकारी बनो एवं प्रभु का सानिध्य प्राप्त करो !
प्रभु हर जीव में चेतना रूप में विद्यमान है अतः प्राणियों से प्रेम करो !
शाकाहार अपनाओ , करुणा को चुनो !
जय गौमाता की🙏🚩☘🙏🚩