आज का सुविचार ,,,,,,,,,
पुरुषार्थ,,,,,,,
१. वेदो मे वर्णित जीवन का अंतिम लक्ष्य "मोक्ष " है यानि मनोविकारो से मुक्ति ! इसे प्राप्त करने के लिए अथक प्रयास कीजिये ! यही मुक्ति एक आत्मा को परमात्मा में विलय का मार्ग सुगम बनाती है ! इसके लिए उचित अनुचित , नैतिक अनैतिक का विचार कर ही आचरण ( कर्म ) कीजिये !
२. युद्ध में और प्रेम में अंतर == युद्ध में मानव दूसरे को मिटाकर जीत प्राप्त करता है ! प्रेम में मानव अपने को मिटाकर जीत अर्जित करता है ! युद्ध ही लड़ना है तो धर्म युद्ध लड़ो (धर्म युद्ध यानि अपने मनोविकारो से युद्ध अथवा स्वयं की बुराई से युद्ध )
३. गौ माता का दूध, दही एव ghee आपकी प्रवृतियों को आध्यात्मिक बनाने में सक्षम है अतः इस अमृत का सेवन किजिए l याद रखिये गौ माता को आपकी दी हुई एक शुद्ध एवं ताजा रोटी ३३ कोटि देवताओं को प्रसन्न कर देती है और वही देवता आपके प्रारब्ध में ( भाग्य ) सुख एवं समृद्धि को संचित कर देते है ! इसी लिए तो ऋषि , मनीषियों एवं देवताओं ने यज्ञोपवीत ( जनेऊ ) में एक धागा देव ऋण का रखा है जो हमें अपनी अगले जन्मो की सुख समृद्धि के लिए देव ऋण चुकाने की याद दिलाता रहता है ! अतः इस सुविचार को हमेशा ध्यान में रखो और तदनुसार आचरण ( कर्म ) करो !
4. अतः वेदों द्वारा निर्धारित जीवन के लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति हेतु पुरुषार्थ करे l
संपादन : नवीन कुमार सचदेव
मुख्य संचालक, देवलोक अग्निहोत्र
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मानसिक मल या मन की मैल,,,,,,,,,
जब मन विषयों में आसक्त रहता है तो उसे मानसिक मल कहते हैं। जब संसार की मोहमाया व विषयों से वैराग्य हो जाए तो उसे मन की निर्मलता कहते हैं।
मानसिक तीर्थ,,,
सत्यं तीर्थं क्षमा तीर्थं तीर्थमिन्द्रियनिग्रह:।।
सर्वभूतदया तीर्थं तीर्थमार्जवमेव च।
दान तीर्थं दमस्तीर्थं संतोषस्तीर्थमेव च।।
ब्रह्मचर्यं परं तीर्थं नियमस्तीर्थमुच्यते।
मन्त्राणां तु जपस्तीर्थं तीर्थं तु प्रियवादिता।।
ज्ञानं तीर्थं धृतिस्तीर्थमहिंसा तीर्थमेव च।
आत्मतीर्थं ध्यानतीर्थं पुनस्तीर्थं शिवस्मृति:।।
अर्थात्—सत्य तीर्थ है, क्षमा तीर्थ है, इन्द्रियनिग्रह तीर्थ है, सभी प्राणियों पर दया करना, सरलता, दान, मनोनिग्रह, संतोष, ब्रह्मचर्य, नियम, मन्त्रजप, मीठा बोलना, ज्ञान, धैर्य, अहिंसा, आत्मा में स्थित रहना, भगवान का ध्यान और भगवान शिव का स्मरण—ये सभी मानसिक तीर्थ कहलाते हैं।
शरीर और मन की शुद्धि, यज्ञ, तपस्या और शास्त्रों का ज्ञान ये सब-के-सब तीर्थ ही हैं। जिस मनुष्य ने अपने मन और इन्द्रियों को वश में कर लिया, वह जहां भी रहेगा, वही स्थान उसके लिए नैमिष्यारण, कुरुक्षेत्र, पुष्कर आदि तीर्थ बन जाएंगे।
अत: मनुष्य को ज्ञान की गंगा से अपने को पवित्र रखना चाहिए, ध्यान रूपी जल से राग-द्वेष रूपी मल को धो देना चाहिए और यदि वह सत्य, क्षमा, दया, दान, संतोष आदि मानस तीर्थों का सहारा ले ले तो जन्म-जन्मान्तर के पाप धुलकर परम गति को प्राप्त कर सकता है।
‘भगवान के प्रिय भक्त स्वयं ही तीर्थरूप होते हैं। उनके हृदय में भगवान के विराजमान होने से वे जहां भी विचरण करते हैं; वही महातीर्थ बन जाता है।
विशेष ,,,,,, जो लोग आत्मा की स्वप्निल अवस्था में है वे स्वप्न में जब मल देखें तो समझ ले की उनका मन तामसिक प्रवृति के कारण आपको मलेछ ( यानि मल की इच्छा ) बना रहा है == सजग हो जाइये ! अलक्ष्मी को आमंत्रित मत करिये ! अलक्ष्मी यानि पाप की कमाई आपको तामसिक बना देगी और व्यसनों में डाल देगी ! नेक कमाई में विशवास कीजिये !
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🌻🌷🌻!! जय श्री राम , जय महावीर हनुमान !! 🌻🌷🌻
🌷🌻🌷!! जय सर्वदेवमयी यज्ञेश्वरी गौमाता !! 🌷🌻🌷
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" जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख !"
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