एक बार पार्वती जी ने शिव शंकर को कर दिया था निरुत्तर, ,,,,,,,,,
( पौराणिक कथा)
यह शंकर-पार्वती का संवाद है। इस संवाद में शंकर जी अपनी पार्वती जी के सामने निरुत्तर हो गए थे।
कस्त्वं?शूली, मृगय भिषजं, नीलकंठ: प्रियेऽहं केकोमेकां वद, पशुपतिर्नेव दृष्ये विषाणे।
मुग्धे स्थाणु:, स चरति कथं? जीवितेश: शिवाया गच्छाटव्यामिति हतवचा पातु वश्चन्द्रचूड: ।।
शंकर जी ने अपने घर का द्वार खोलने के लिए पार्वती जी को आवाज दी। पार्वती जी ने पूछा की तुम कौन हो। इस पर शिवजी ने कहा कि मैं शूली (त्रिशूल धारी) हूं। फिर पार्वती जी ने सवाल का बाण छोड़ दिया और पूछा कि शूली हो तो वैद्य के पास जाओ। बता दें कि शूली का अर्थ शूल रोग से पीड़ित भी होता है। फिर शिवजी ने कहा, "प्रिये! मैं नीलकंठ हूं।" तब पार्वती जी ने मयूर अर्थ में कहा कि एक बार केका ध्वनि कर के दिखाओ। फिर शंकर जी ने कहा मैं पशुपति हूं। इस पर भी पार्वती जी के पास जवाब मौजूद था। उन्होंने कहा कि पशुपति हो तो तुम्हारे सिंग दिखाई क्यों नहीं दे रहे। बता दें कि पशुपति का अर्थ बैल भी होता है।
फिर शिव जी ने कहा, "मुग्धे! मैं स्थाणु हूं।" तब गौरी बोलीं स्थाणु चलता कैसे है। बता दें कि स्थाणु का अर्थ ठूंठ भी होता है। फिर भोलेनाथ ने कहा कि मैं शिवा हूं। पार्वती का पति हूं। इस पर पार्वती जी बोलीं कि अगर तुम शिवा के पति हो तो जंगल में जाओ। बता दें कि शिवा का अर्थ लोमड़ी भी होता है। और इसी संवाद में शिव जी पार्वती के सामने निरुत्तर हो गए थे।
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माता पार्वती इस तरह कहलाईं मां शेरावाली,,,,,,,
( पौराणिक कथा)
माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए हजारों वर्ष तक तपस्या की थी। तपस्या का तेज बहुत अधिक था। इस तेज से माता का रंग काला पड़ गया था। लेकिन तपस्या का फल उन्हें जरूर मिला। भगवान शिव उन्हें पति के रूप में प्राप्त हुए। फिर एक दिन माता पार्वती और भगवान शिव एक साथ कैलाश पर्वत पर बैठे थे। तभी हंसी-हंसी में माता पार्वती को शिवजी ने काली कहकर पुकारा। लेकिन यह पार्वती जी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उन्होंने तुरंत कैलाश छोड़ दिया। वो वन में तपस्या करने चली गईं जिससे उनका गोरा रंग उन्हें वापस मिल पाए।
जब वो वन में तपस्या कर रही थीं तब एक शेर वहां आ गया। वो उन्हें खाना चाहता था। लेकिन माता की तपस्या को शेर चुपचाप बैठकर देख रहा था। माता रानी ने वर्षों तक तपस्या की। उनकी तपस्या खत्म होने तक शेर वहीं बैठा रहा। माता पार्वती की तपस्या को खत्म करने के लिए शिवजी उनके पास गए। उन्होंने माता को गोरा होने का आशीर्वाद दिया। वरदान पाने के बाद मां पार्वती नहाने चली गईं। जब वो स्नान करने गईं तो उनके शरीर से एक और काले रंग की देवी निकलीं। इनके निकलते ही माता गोरी हो गईं। इन काली माता का नाम कौशिकी पड़ गया। फिर माता पा्रवती का रंग गोरा हो गया। इससे माता रानी को एक और नाम मिला। इन्हें गौरी नाम से भी जाना जाने लगा।
जब माता रानी अपने स्थान पर वापस पहुंची तो वो शेर जो उन्हें खाने आया था वहीं बैठा मिला। इससे वो बेहद प्रसन्न हुईं और माता गौरी ने उन्हें अपना वाहन बना लिया। वो शेर पर सवार हो गईं। इसके बाद से ही उन्हें शेरावाली भी कहा जाने लगा।
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